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(१२५) क्षणमा नावथी मुक्ति छे, वीर कथे भगवान् ॥१॥ वोरो शाळवी भाव वण, पाम्यो काया क्लेश; नाव रुचि रस प्रेमथी. विघटे रागने द्वेष. ॥२॥ भाव विना किरिया सकल, निष्फळता देनार; हर्षोल्लासे जावना, भावो नरने नार. ॥६॥
जीरण शेठ भावना भावेरे. महावीर प्रभु घेर
आवे-ए राग. महावीर प्रनु जयकारी, नावे उपदेशे सुखकारी; जावथी सर्व सिद्धि थनारी, भाव दिलमां धरो नर नारीरे; जावनी जगमा बलिहारी, जाव अमृत आनंदकारीरे. नाव. ॥१॥
चकी भरते भावना जावी, क्षणमा घाति कर्म हगव); थे केवली मुक्तिने पावी, जाव; नक्तिनी छे चावीरे. जाव० ॥१॥ जावे जावना भावतां ज्ञानी, थया आषाढा मुनि ध्यानी; थया क्षणमां केवल
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