________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१२३) ओधवजी संदेशो कहेजो श्यामने. ए-राग.
द्रव्यभावथी तप तपशो नरनारीओ, कार्यनी सिद्धि तप वण कोइ न होय जो; मोहपरिणति रोधक निश्चय तप भवं, कर्तव्यो करतां सहेजे तप जोयजो. द्रव्य० ॥१॥ बाहिर तप षड्नेदे सुखकर छे सदा, भव्यजीवो तेनो धरता व्यवहारजो; अन्यंतर तप षम्भेदे ले निर्मलं, शुद्धातम कारक ते छे सुखकारजो. द्रव्य. ॥२॥ देवगुरुने संघनी सेवा नक्तिमां, सर्व समर्पण कर तप ए बेशजो; निष्कामे निज अधिकारे फों अदा-करतां तप ते पमता सहेवा कलेशजो. द्रव्य० ॥३॥ प्राण पमे पण धर्म कर्म नहीं मूकवां, निर्जय निश्चल भावे रहे चित्तजो; सर्व शुभाशुभ भावविषे समभावना, धरवी तप ए जाणो श्रेष्ठ पवित्रजो. द्रव्य० ॥४॥ दुर्गुण दोषने सर्व व्यसनने टाळवां, उपकारी कमों करवां सही दुःख जो; लाभालाभमां मान अने अपमानमां, समताए रहीए ने सहीए नूखजो. द्रव्य० ॥ ५॥ रोगी आदि जीवोनां दुःख टाळवा, तनमन
For Private And Personal Use Only