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( १०२ )
ए व्रत जगमां दीवो मेरे प्यारे, ए व्रत जगमां दीवो. ए राग.
ब्रह्मचर्य सुखकारी हो जगमां, आतम आनंदकारी; ॥ द्रव्यथकी देहवीर्यनी रक्षा, स्त्री मैथुन परिहारी; जावथकी पर परिणति त्यागे, ब्रह्मव्रती जयकारी हो. जगमां, ब्रह्मचर्य सुखकारी ॥ १ ॥ पांचे इन्द्रिय वीश विषयो, शुभ अशुभ नहीं लागे; स्वप्ने पण नहीं कामनी वृत्ति, ब्रह्मजाव घट जागे हो. जगम ॥ २ ॥ मैथुन जोगे सुख नहीं शांति, आधि व्याधि उपाधि, जाणी मुनिवर ब्रह्मस्वरूपे, वर्ते वे निरुपाधि हो. जगमां० ॥३॥ कामी व्य निचारी महादुःखी, रूप राग जरमाया; हडकाया कूतरनी पेठे, क्यांये सुख नहीं पाया हो. जगमां० ॥ ४ ॥ कामभागथी थाय न शांति, उलटी कामनी वृद्धि; जाणी कामनी वृत्ति शमावो, पामो आत्मिक ऋद्धिहो. जगमां० ॥ ५॥ चामडी रागी जन चाममिया, यतमना नहि प्रेमी; तमरागी जग वैरागी, क्र्ते योगी क्षेमी हो.
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