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( १०१) भक्ति करो बहु जावे; क्षण एक साधुनी संगत करतां, निश्चय मुक्ति थावे हो. मुनिवर० ॥ ७॥ अणुसम गृहीने मेरु सरीखा, मुनिवर मोटा जाणो; संतोषे नहीं कोनी परवा, आनंद भोगी मानो हो. मुनिवरण ॥ ९॥ निश्चयने व्यवहारथी त्यागी, सेवो पूजो ध्यावो; बुद्धिसागर शुद्धातम पद, पूर्णानंदी पावो हो. मुनिवर ॥ १०॥ ॐ0-अकिंचन धर्म लाभाय जलादिकं यजामहे स्वाहा.
दशमी ब्रह्मचर्य धर्म पूजा. ब्रह्मचर्य सम को नहीं, सर्व धर्ममां श्रेष्ठ, द्रव्यभाव ब्रह्म आगळे, अन्य सकल डे हेठ. ॥१॥ नेमि सुदर्शन जंबुने, स्थूलिभद्रज अनगार; गावो पूजो जावथी, ध्यावो नरने नार. ॥२॥ ब्रह्म मळे ब्रह्मचर्यथी, भाखे वीर जिनेश; द्रव्यभावथो धारतां, नासे सघळा क्लेश. ॥३॥
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