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શ્રી પરમાત્મ તિ:
૨૯૫ वचः क्रियामां कर्म छे, वचनातीत छे धर्म. देह क्रियामां कर्म छे, देह भिन्न छ शर्म. त्रियोगातीत आतमा, योगे नहीं ग्रहाय. योग धर्म छे जड तणो, चेतन चिन्मयराय. योगातीत जे धर्म छे, ज्ञानादिक जयकार. तेमां निश्चय धर्म छे, सापेक्षा दिलधार. योगव्याति भिन्न छे, चेतन धर्म अरूप; आत्मधर्मनी धारणा, चिदानन्द सुख भूप. इन्द्रियातीत धर्म छे, उपादान सुखकार; षट्कारक शुद्धि थतां, आत्म धर्म जयकार. आत्मशुद्धि ते धर्म छे, भाषे धर्म जिनेश. बुद्धिसागर समजतां, आनन्द होय हमेश. घटे उपाधि धर्म ते, अंशे अंशे जोय. योगतणी स्थिरता थतां, सत्यवर्म मुख होय, निमित्त सखग्रहणथकी, आत्मधर्म व्यवहार. अनेकान्तनय ओळखो, आत्म धर्म जयकार. अनेकान्तनयदृष्टिथी, शोधो चेतन धर्म; पुद्गल द्रव्यथी भिन्न छे, समजे नासे कर्म. अरूप चेतन धर्मने, विरला जाणे भव्य शुद्ध रमणता किरिया, रुडुं छे कर्तव्य, आत्मक्रिया अवलंबवी. शुद्ध धर्म जयकार बुद्धिसागर धर्मथी, लीला लक्ष्मी अपार; १८
પડ દ્રવ્ય છે. તેમાં પ્રત્યેક દ્રવ્યના ધર્મ ભિન્ન ભિન્ન છે. વર્ણ, ગંધ, રસ અને સ્પર્શ એ પુદ્ગલ દ્રવ્યના ધર્મ છે. મહાદિક પરભાવ ધર્મ છે. તેને જગના જ દષ્ટિદોષથી ધર્મ તરીકે
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