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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ८८ ) आत्मज्ञान महत्ता. अंतर पण शान्त होयछे, केटलाक अंतर्थी शांत होता नथी अने उपरथी पण शांत होता नथी. शांतावस्थानुं सुख आत्मज्ञानीयो पाम्या, पामेछे, अने पामशे. 46 "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुहा. परपुद्गलना देशने, मान्या मारा देश; तेनी ममता करी, ग्रहिया पुद्गल वेष. ७८ ठाम ठाम हुं भटकियो, चार गति दुःख खाण; त्यां पण ममता देशनी, कीधी गुणनी हाण. ७९ भावार्थ- पौद्गलिक देशने पोताना मानी राग द्वेषयी कर्म ग्रहण करतो छतो विचित्र प्रकारनां शरीर धारण कर्या, नाना देहो धारण करी दुःखनी खाणभूत चार गतिमां ठेकाणे ठेकाणे चेतन भटक्यो, अने ज्यां ज्यां उत्पन्न थयो त्यां पण देशनी ममता धारण करी पोतानुं भान भूली आत्मगुणनो तिरोभाव कर्यो, आ मारुं घर, मारुं क्षेत्र, मारी पृथ्वी, आदिना अभिमानथी रुशिया जापाननी पेठे हजारो जीवोनो नाश थयो तेनुं कारण परपौद्गलिक देशनी ममताछे, अज्ञानी जीवो स्वदेशाभिमानमां एम. ए. सुधी भण्या होयछे तो पण अज्ञान प्रवाहमां तणाइ जायछे. पोतानो देश कयो छे ते गुरुभक्तो निश्चयतः जाणी शकछे. मन बाह्य विषयमां धावे छे, तावत् जीव कर्मनी राशि अशुद्ध परिणामे ग्रहेछे, गुजरात, बंगालादि देशो माराछे अने हुं एनोछु, आ राज्य मारुंछे अने हुं एनोछु, आ कुटुंब मारुंछे, अने हुं एनोछु, एवी बुद्धि यावत् थायछे तावत् जाणवुं के चेतन जडता अनुभवेछे, आत्मा अने परमात्म स्वरुपनुं ज्ञान थाय तेने ज्ञान कहेछे, अने आत्मा अने. परमात्मानी ध्यानयागे अक्यता थाय तेने विज्ञान कहेछे, For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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