________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
परमात्मदर्शन.
(४५) मेमान थइ आधि ब्याधिनी दुःख श्रेणि परंपराने पामेछे. ___आत्मार्थि जीव स्वपरवस्तुनो विवेक करी हेयज्ञेय उपादेय समजी गुणठाणानी परिणति समजी व्यवहार निश्चयनयर्नु स्वरुप गुरुगमद्वारा समजी वैराग्यनी तीक्ष्णताए सद्गुरु आज्ञाभक्ति विनययोगे सालंबन अने निरालंबन ध्याननी अभिलाषाए अंतःकरण शुद्धिपूर्वक स्पाद्वाद आत्मिक धर्मनुं आराधन करतो जल पंकजवत् वर्तन चलावतो व्यवहारमा वर्तेछे, परभाव प्रवृत्तिमूलरागद्वेषमहा मल्लछेदक आत्मस्वभावपरिणतिमां वर्तता भव्यात्माओ ज्ञान ध्यानयोगे क्षयोपशमभावे वा उपशम भावे मोहनीय कर्मनो उच्छेद करी समकित पामी स्वल्पकालमां कर्मक्षय करी केवलज्ञानादि संपदा पामी चउदमुं गुणठाणुं आयुष्य मर्यादाए उल्लंघी सादि अनंति स्थिति पामी अनहद आनंददायक शाश्वत शिवसुख स्वरुप मुक्तिधाम पामी शकेछ. समये समये जीव सात वा आठ कर्म बांधे छे, स्वभावमा रमे तो कर्मबंध टळेछे, माटे आत्मतत्त्वनी प्राप्ति अर्थे सद्गुरु वचनामृततुं विनयभक्तियोगे पान करवू एज हिताकांक्षा.
" दुहा." अखंड अक्षय शाश्वतुं, देखी आतम रूप; चित्ते चमक्यो आतमा, अरे हुं तो महा भूप.७६
भावार्थ-अखंड, अक्षय, शाश्वतस्वरुप पोतानुं पोते आत्मा देखी चित्तमा चमक्यो अर्थात् आश्चर्य पाम्यो, अने कहेवा लाग्यो के-अरे हुं तो महाभूपर्छ, अद्यापि पर्यंत में पोताने अज्ञानी जाण्यो, हुँ गरीब छु एवी मने भ्रांति हती पण हवे ए भ्रांति चाली गइ, हुं निर्धनछु एम हुं पोताने मानतो हतो पण जाण्यु के-मारा आत्मामा अनंत धन रांछे, तेनी संपति काले खबर पड़ी, चक्रवर्ति आदि
For Private And Personal Use Only