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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है. भीषमा उत्पाद, व्यय अने ध्रुवपणुं व्यापीने रचु छ, जीवना असंख्याता प्रदेश छ, एकेक मदेशे अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंत वीर्य, अनंतभोग, आदि ऋद्धि रहीछे, पंचद्रव्यना द्रव्य, गुण, पर्याय धर्मनुं जाणवापणुं एक आत्माना प्रदेशमा रहुं छे तो असंख्याता प्रदेशनी तो वातज शी कहेवी ? निश्चयनये स्वगुणादिकनो कर्ता आत्मा जाणवो, व्यवहारनपथी कर्मनो कर्ता आत्मा जाणवो. व्यवहारना घणा भेदछे. शुद्ध व्यवहारनय, अशुद्ध व्यवहारनय. शुभ व्यवहार, अशुभ व्यवहार, अनुपचरित व्यवहार, उपचरित व्यवहार नय, वळी व्यवहारनयना बे भेदछे. १ सद्भूत व्यवहार, बीजो असद्भूत व्यवहार. एक द्रव्याश्रित ते सद्भुत व्यवहार अने जे परविषयनो आश्रय करे ते असभूत व्यवहार नय जाणवो. प्रथम सद्भूत व्यवहारना बे भेदछ, एक उपचरित सद्भुत व्यवहार अने बीजो अनुपचरित सद्भूत व्यवहारनय. सोपाधिक गुण गुणीनो भेद देखाडे. जेम जीवस्यमतिज्ञानं. अत्रमतिज्ञान सोपाधिक गुणछे, अने जीव गुणी तेनो भेद देखाड्यो, ते उपचरित प्रथम भेद जाणवो. ___ तथा निरूपाधिक गुण अने गुणीना भेदे पीनो अनुपचरित सद्भूत व्यवहार जाणवो. जेम जीवस्य केवलज्ञानम्. जीवन केवळ मान, अत्र केवळझान निरूपाधिक गुणछ, अने जीव गुणी छे, माटे निरूपाधिकपणे गुण गुणीना भेदे बीजो भेद जाणवो. असद्भुत व्यवहारनयना बे भेद छे, एक उपचरित असद्भूत व्यवहारं, अने बीजो अनुपचरित असद्भूत व्यवहार जाणवो. प्रथम भेद असंश्लेषितयोगे एटळे कल्पित संबंधे होयछे, जेम For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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