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परमाऽमदर्शन,
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ताछे. परद्रव्य, परधर्म, परपर्यायनी नास्तिता दल द्रव्यमा छे. जे समयमा अस्तिताळे, तेज समयमां नास्तिताछे. अस्तिता अने नास्तितानुं स्वरूप वक्तव्या वक्तव्य रूपेछे. पुद्गल द्रव्य चतुर्दश राजलोकमां व्यापीने रझुंछ, पुद्गल परमाणुआ अनंताछे. पुद्गल द्रव्यने आ जीवे शरीर, आहार, इंन्द्रियादिपणे अनंतिवार ग्रहण कर्यु अने मूक्यु पण पुद्गल द्रव्य कोइ काले आत्मानुथयुंनी अने थवानुं नथी एनुं विस्तारथी
स्वरूप गुरुमुखथी धार __ ५ काल-कालना त्रण भेद छे, अतीत काल, अनागत काल अने वर्तमान काळ, कालनो समय अति सूक्ष्म छे, सर्व द्रव्य उपर कालनी वर्तना वर्ती रहीछे, काल द्रव्य आत्मगुणोतुं घातक नथी. - ६ जीवद्रव्यास्तिकाय-जीव द्रव्य अरूपीछे, शरीरधारी जीव व्यवहारनयथी रुपी कहेवाय छ. जीव चेतन छे, पोतानं स्वरूप निश्चयनयथी अक्रिय छे, अने वळी निश्वयनयथी पोताना धर्मनी क्रिया जीव करेछे, माटे जीव सक्रिय छे, व्यवहारनयथी जीवकर्मनी साथे भन्यो छतो परद्रव्ययोगे गमनादिक क्रिया करेछ माटे सक्रिय छे. जीवद्रव्य अनंत छ. जीवना बे भेद छे. एक संसारी अने सिद्धना जीवो संसारी जीव पण अनंतछे, अने सिदना जीवो पण अनंत छ, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य, उपयोग ए जीवनुं लक्षणछे. जीवमा स्वकीय द्रव्य, क्षेत्र कालादिकनी अस्तिता छे, परद्रव्यना द्रव्य क्षेत्र काल भावनी जीव द्रव्य मां नास्तिताछे, स्वद्रव्यादिकनी अनंत अस्तिता अने परद्रव्यादिकनी अनंत नास्तिता समये समये जीवद्रव्यमा चर्ते छे. द्रव्यार्थिक नयी जीव शाश्वतो छ, अने पर्यायाथिकन यथी जीव अशाश्वतो
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