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( ७२ )
श्री गुरु द्रव्यनुं ध्यान धरेछे.
तथा परधर्मनी नास्तितानी अपेक्षाए सप्तभंगी उत्पन्न थाय छे, जेम जेम सम्यग् ज्ञान थतुं जायछे, तेम तेम उपयोगनी एकाग्रताए विशेष ज्ञान थतुं जायछे.
३ आकाशास्तिकाय - अधर्मास्तिकायादिकने अवगाहना आपवानो स्वभाव आकाशनोछे, आकाशना वे भेदछे, १ लोकाकाश अने २ अलोकाकाश, जेमां छ द्रव्यनी स्थीति छे, ते लोकाकाश जाणवु, जेमां आकाश सिवाय अन्य पदार्थनी स्थीति नथी तेने अलोकाकाश कहे छे. तेना चार गुण छे, अरूपी एटले रूपरहीत, आकाशनुं काळं, पीलुं, घोलुं, नीलुं, श्वेतआदि रूप नथी. प्रश्न- आकाशनं चक्षुथी जोतां काळं रूप देखा यछे, अने तमे केम ना कहोछो ?
उत्तर - आकाश सामुं देखतां जे कालीमा देखाय छे ते कइ आकाशनी कालीमा नथी. किंतु पुद्गलद्रव्यनी कालीमाछे, माटे आकाश रूप नथी.
प्रश्न - निर्मळ जलथी परिपूर्ण स्थिर सरोवरमां आकाशनुं प्रतिबिंब पडेछे, देखो, सरोवर माटे आकाशनुं रूप मानवुं जोइए. उत्तर - विशेष सूक्ष्मबुद्धिद्वारा परीक्षा करतां अवबोधाशे के आकाशनुं प्रतिबिंब सरोवरमां पडतुं नथी, अने सरोवरमां जेनुं प्रतिबिंब पडेछे ते पुद्गलद्रव्यछे, तेमां जोतां मालुम पछे के वादळां विगेरेनुं प्रतिबिंव सरोवरमा देखायछे, साकारनुं प्रतिबिंब पडेछे, निराकारनुं प्रतिबिंब पडतुं नथी, छ द्रव्यमां एक पुद्गल द्रव्य सांकारछे, बांकीनां पांच द्रव्य निराकारछे, साकारतुं साकारने विषेज प्रतिबिंब पडेछे, आकाश निराकारछे माटे तेनुं प्रतिबिंब पडी शंकतुं नथी.
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