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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मदर्शन.. (१) रही छे. ते अधर्मास्तिकायना प्रदेशमा अनंतगुणनी हानी छे, त्या अनंत गुणहानी मटीने असंख्यात गुणहानि थाय छ, संख्यात गुणहानि होयछे, त्यां अनंतगुण हानि थायछे, एम असंख्याता प्रदेशोमां षड्गुण हानिवृद्धि समये समये भिन्न भिन्न परिणमवाथी सर्व प्रदेशो अपेक्षाए एक सरखा नथी, एक स्थानथी बीजे ठेकाणे प्रदेशो गमन करता नथी. माटे प्रदेशो अचल छे, वळी प्रदेशना कडका थता नथी, माटे अखंडछे. अधर्मास्तिकायमा जाणवानो गुण नथी माटे जडछे, पोताना स्वरूपे अधर्मास्तिकायमां अनंत शक्तिछे, तेनी केवली भगवान्ना वचनथी श्रद्धा करवी. आ द्रव्य लोकाकाशमां व्यापक छतां कोइ द्रव्यना गुगर्नु घातक नथी. अने ते अन्य द्रव्यमा परिणमतुं नथी, पोताना स्वभावनो त्याग करतुं नथी. अधर्मास्तिकायने पुण्य पाप लागी शकतुं नथी, परद्रव्यनी साथे परिणम स्वभाववाला जीवद्रव्यने पुण्य पाप लागी शकेछे. अधर्मास्तिकाय द्रव्य जाणी शकायछे, माटे अधर्मास्तिकाय प्रकाश्यछे, अने ज्ञान प्रकाशक छे, अधर्मास्तिकाय ज्ञेयछे, अने जीव ज्ञाताछे, द्रव्यार्थिक नयापेक्षया अधर्मास्तिकाय शाश्वत छे. पर्यायार्थिक नयापेक्षया अधर्मास्तिकाय अशाश्वत छ, अन्य द्रव्य साथे परिणमतुं नथी. माटे अधर्मास्तिकाय अपरिणामीछे, अधर्मास्तिकाय द्रव्यरूपे नित्य छे. अने पर्यायरूपे अनित्य छ, अनंत अस्तित्व धर्मथी युक्त अधर्मास्तिकायछे. आ द्रव्य जाणवा योग्यछे, अने ते आदरवा योग्य नथी फक्त ते द्रव्यनुं स्वरूप ज्ञानदृष्टिथी जणायछे, आत्मानी साथे तेने कंइ संबंध नथी. एकेक प्रदेशे अनंत धर्म अनंतगुण अनंतपर्यायनी अस्तिता छे, अने अधर्मास्तिकायना एकेक प्रदेशमा परद्र०५ना अनंतधर्म अनंतगुण अने अनंतपयायनी नास्तिता व्यापी रहीछे, प्रत्येक प्रदेशमा रहेला धर्मनी अस्तिता For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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