________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१७.) श्रीगुरु पदम्पनुं ध्यान धरे छे. अने उत्पाद, व्ययनी अपेक्षाए अनित्य छ, द्रव्यर्थिक नयनी अ. पेक्षाए धर्मास्तिकाय शाश्वतछे, अने पर्यायास्तिकनयनी अपेक्षाए धर्मास्तिकाय अशाश्वतछे, धर्मास्तिकाय ज्ञेयछे, पण तेनामा ज्ञातापणुं नथी, जड छे माटे.
२ अधर्मास्तिकाय-स्थिर रहेवामा साहाय्यदायक गुग अधर्मास्तिकायनो छे, मनुष्य मार्गमां चालतां थाके छे, त्यारे झाड जेम तेन बेसवामा सहाय्यकारक छे, तेम अधर्मास्तिकार्यनी साहाय्यथी जीव पुद्गल स्थिर थायछे, ए द्रव्यना चारगुण छे, अमूर्त, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श थकी रहित, जीवत्वथी रहीत माटे अचेतन, विभाविक क्रिया रहित माटे अक्रिय, निश्चयनयनी अपेक्षाएतो स. क्रिय छे, स्थिर पदार्थने साहाय्य करे छ, माटे स्थिर साहाय्यगुण अधर्मास्किाय असंख्यात प्रदेशमयी छे, लोकाकाशमां व्यापीने रघुछे, अनादि कालथी छे, माटे तेनो उत्पन्न कर्ता कोइ नथी, कोइ पण काले तेनो अंत नथी, माटे अनंत छे, अधर्मास्तिकायना प्रत्येक प्रदेशमां अगुरु लघुथी समये समये षड्गुण हानि वृद्धि परिणमी रही छे, अधर्मास्तिकाय चर्म चक्षुथी देखी शकातुं नथी. अधर्मास्तिकायना चार गुण छे, रुप रहित माटे अमूर्त, अचेतन एटले जीव रहीत, अक्रिय एटले विभाविक क्रिया रहीत, अने स्थिर सहायगुग ए चारगुण अनादि अनंतमे भांगे अधर्मास्तिका यमांछे, समये समये अनंत जीवोने तथा पुद्गलोने स्थिति सहाय आपे छे, एकेक प्रदेश अनंता गुण पर्याय रह्या छे. अधमास्तिकायद्रव्यमा स्वगुण पर्यायनी अस्तिताछे, परगुग पर्यायनी नास्तिता छे, द्रव्यत्वनी अपेक्षाए दरेक अधर्मास्तिकायना प्रदेशो एक साखा छे, कारण के दरेके प्रदेशमां द्रव्यत्वपणुं रह्यं छे, किंतु अगुरुलघुथी थतीषड्गु गहानिवृद्धि प्रदेश प्रदेश प्रति भिन्न भिन्न परिणामी
For Private And Personal Use Only