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परमात्मदर्शन
प्रश्र-आत्माने विषे अन्य द्रव्य भासे छे, त्यारे आत्मामां अन्य - द्रव्यतुं प्रतिबिंब पड्या विना केम भासे ? उत्तर-दर्पणमा मुखनुं प्रतिबिंब जेम भासेछे, तेम आत्मामां अन्य
पदार्थानां प्रतिबिंब पडतां नथी, ज्ञान गुण पोतानी शक्तिथी सर्व पदार्थोने जाणेछे, तेथी सर्व पदार्थोनां प्रतिबिंब आत्मामां पडतां नथी. ए उपरयी सिद्ध थायछे के-आकाश अरुपी छे, अचेतन एटले जीवरहित, विभाविक क्रियारहीत आकाश जाणवू. केटलाक मतवादी एम मानेछे के-आकाशथी जलनी उत्पत्ति थइ पण ते मंतव्य नथी. कारण के-आकाश निराकार अक्रियछे अने तेनाथी कोइ पण पदार्थनी उत्पत्ति थती नथी, जळादिक साकारछे, अने आकाश निराकारछे, माटे निराकारथी साकार वस्तुनी उत्पत्ति थइ शके नहीं, वळी आकाश अनादि कालर्नु छ, अने कदी तेनो अंत आववानो नयी माटे अनंत छे, माटे आकाशनो बनावनार कोइ नयी, वळी आकाशनो उत्पन्न करनार कोइ होवो जोइए, एम कोई कहे तो विकल्प के-आकाशरूप कार्यनु उपादान कारण कोण ? अने निमित्त कारण कोण ? प्रथम पक्ष-आकाशनु उपादान कारण इश्वर जो कहेशो तो ते संभवतो नथी, कारण के इश्वर ज्ञानवान् छ, अने आकाश जडछे, इश्वरनो ज्ञान गुण आकाशरूप कार्यमा आववो जोइए, पण तेम नथी. माटे इश्वर आकाश- उपादान कारण कहेवाय नहीं, अलबत आकाश- उपादान कारण कोइ नथी. जेने उपादान कारण नथी तेने निमित्त कारण पण नथी. इश्वर आकाशनुं निमित्त कारण नथी. आकाश अनादि कालथी स्वयंसिद्ध छे, आकाशमा अवगादना गुणछे, तेथी अन्य द्रव्योन रहेवा माटे
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