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परमात्मदर्शन. .
विषय कषायनी परिणति जेनी मंद थइछ, आत्मामा रहेल धर्ममा प्रोनु मन वळ्युंछे, बाकी सांसारिक कार्यमा जेतुं पित्त लागतुं नधी, अने सांसारिक कार्य करेछै तोपण ते थकी न्यारो रही लुखा परिणामे करेछे, मेरुपर्वत सम जेने धैर्यता प्रगट थइछे, देववाथी पण डगायो डगे नहीं, एको धैर्यवंत. होय, मन वचन अने कायाना योग जेना वशवति थयाछे, एवा गुरुभक्तशिष्यो भवनो पार पामशे.
___ "दुहा." समता चित्त अंगी करी, अदेखाइनो नाश; करता गुरु भक्तो सदा, पामे शिवपुर वास ॥५६॥ गुरु आज्ञाए चालतो, करे न आज्ञालोप; शिक्षा गुरु देतां सदा, कदी करे नदि कोप ॥५७॥ गुरु सेवामां रत सदा, गुरु गुण करे प्रकाश; गुरु अवगुण दाखे नहीं, ते गुरु भक्तो खास ॥५०॥ ____भावार्थ-जे शिष्योए समता पोताना मनमां अंगीकार करीछे, लोभादिक अवगुणोनी मंदता थइछे, अने अदेखाइनो नाश जेणे फर्योछे, गुणिनी अभिवृद्धिथी जेना मनमां इर्ष्या थती नथी, अथवा गुरुमहाराज कोइ शिष्य उपर विशेष प्रीति राखे पण तेथी अन्य शिष्यनी अदेखाइ करे नहीं, गुरुमहाराजना जेटला भक्तो होय तेटला उपर पोताना प्राण पाथरे, एवा गुरु भक्तो आ तोफानी दुनियामा रह्या छता पण अंतरंगथीन्यारा रह्या छता गुरुनी भक्ति द्वारा ज्ञान पामी अनंत सुखसमय सिद्धि सौध पामे. मुमुक्षु शिष्य गुरु आज्ञामां धर्म मानतो गुरुनी मरजी प्रमाणे चाले, मन, वचन
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