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परमात्मदर्शन.. सबी निर्जराको हेतुहेशानी भोग कहे तो पण तेथी निर्जरा थायछे. ज्ञानीन कोइना प्रतिबंध नथी, राग द्वेषनुं जे कारण लागे तेनाथी दूर रही आत्मध्यान करेछे. श्री यशोविजयजी प्रमुख सुगुरुओ जाणवा.
कपटी मुनिनुं लक्षण कहे छे.
"दुहा." मनभीतरनी ओरने, वर्ते बाहिर ओर; कहेणी रहेणी सम नहीं, ए पण चऊटा चोर. ४७.
मनमा कइ अने वाहिर आचरण कंइ कहेणी प्रमाणे रहेगी न होय, श्रावनी आजीजी करनार होय, कपटपणाथी वर्ते ते पण चउटानो चोर जाणवो, कदापि व्रतादि पाळी शकतो होय नहीं पण प्ररुपणा वीतरागमार्गना अनुसार करे ते आराधक छ, पण कपटी. तो विराधक छे.
योग्य जाणतां खोलता, पेटी धर्म विशाल; सेवा साचा दीलथी, सदगुरु महा कृपाल.॥४८॥ . ज्ञानी गुरु महाराजा योग्य जीव जाणीने धर्म रत्ननी पेटी मनोहर विशाळ खोले छे, अने तेना आत्मानुं कल्याण करेछे, भन्योने उपदेश द्वारा मोक्ष मार्ग दर्शावे छे, अयोग्य मनुष्यनी आगळ मौन धारण करे छे, जे दृष्टिरागी न होय अने विनयी होय तेनी आगळ योग्यता प्रमाणे अवसरे उपदेश आपेछे, एक सरखो उपदेश प्रत्येक मनुष्यने परिणमतो नथी, माटे योग्यनेज उपदेश देवो, मेघन मल, सीप, झाड, सर्प आदिना मुखमां पडयं,
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