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( ४६ ) गुरु, प्रणतवन्री अड़ा करावे छे, तरीके अज्ञानथी गणेछे, ए वर्तन वीतरागशाखयकी विरुद्धछे, साधुना सत्तावीस अने श्रावकना एकवीस गुण मळी अडताळीश गुणयुक्त संघ कड़ेवाय छे. ज्ञान दर्शन चारित्रधी भिन्नाभिन्न अने व्यवहारनयथी शुभाशुभ कर्मनो कर्ता तथा भोक्ता, चैतन्यलक्षण युक्तजीवतच्वनी प्ररुषणा तीर्थकरे करीछे. जीवथी विपरीत अजीवतत्त्व प्ररूपण तेमने कछे, एम नव तत्त्वनुं प्ररूपण कर्ता वीतराग देवछे, आयुष्य मर्यादा पर्यंत पृथ्वीतळ पावन करी अघातीयां कर्म खपाची अशरीरी अनामी यह सिद्धस्थानमां पहोंची सादि अनंति स्थिति अजरामर पद भोगवेछे, एवा देवने देव तरीके मानवा, वीतराग आज्ञाधारक पंचाचार, पंचमहाव्रत आ राधक, गुरुने गुरु तरीके स्वीकारवा, वीतरागकथीत मोक्षमार्ग स्वरूप धर्मने धर्मरूपे स्वीकारतो, आ त्रण तश्वनी श्रद्धा गुरु महाराजना उपदेशाथी थाय छे, माटे गुरु महाराज समकितदायक मबल निमित्त कारण छे तेमज गुरु तरीके सदा स्वीकारी तेमनी आज्ञानुसार चालवू. विवेकशून्य अज्ञानवासीत चित्तवाळो मूढपुरुष परमार्थबुद्धिहीन जेटलुं प्रवाही घोळं तेटलं दुग् एत्री अज्ञानताथी रोज पशुनी पेठे सर्व मुंडे मां, सर्व धर्मोपदेशकोम गुरुबुद्धि धारण: करेछे ते अज्ञानी स्वआत्मशुद्धि करी शकतो नयी अने भविष्य काले सद्गुरूश्रद्धा विना करशे पण नहीं, आत्मतत्त्वज्ञ, अध्यास्मोपयोगी गुरुनुं आलंबन अनादिकाल संलग्न अज्ञाननो नाश करेछे, सहजानंदी आत्मानुभव मंदिरमां म्हाळनार गुरु महाराज प्रत्यक्ष मारा उपकारीछे, अने जिनेश्वर परोक्ष उपकारीछे, एम विवेकदृष्टि जेने प्रत्यक्ष थइ छे ते धर्म पामी शकेछ, गुरु श्रद्धा अने क्षद्धान्तःकरणयी गुरु भक्ति करवायी तेमनी उपकार भव्यात्माने लागेछे, अने श्रद्धा भक्ति विना उपदेश लागतो नथी, गुरुती आज्ञा
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