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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मदर्शन भावना थती नथी, ते तो एमज विचारेछे के जीवनो कोई शत्रु मित्र नथी, तैम संबंधी पण नथी, पारकी निंदा करवी तेमां मने कंइ फायदो नथी, आत्मज्ञानीओ तो एम विचारेछे के-सर्व जीव कर्मना वशे जुदी जुदी सारी नठारी आचरणा करेछे, तेमां हुं सर्व ना आत्मानी निंदा करूं के शरीरोनी निंदा करूं, अलबत विवेक थी विचारता कोइ पण निंदाने पात्र नथी, ज्यां सुधी मनमां निंदा करवानी बुद्धि थायछे त्यां सुधी कोइ अपेक्षाए धर्मी नथी, तेम परनी निंदा करतो साधु वा श्रावक होय तो पण ते चंडाल समान मनोवृत्तिथी जाणवो, शुष्कज्ञानी मुखथी आ संसार असारछे एम मुखथी पोकारेछे, पण संसारमा आसक्ति राखी भवभ्रमण करेछे, शुष्कज्ञानी चारित्र अंगीकार करी शकतो नथी, केटलाक श्रावको उपरथी त्याग विराग देखाडी संसारमा शुकरनी पेठे आसक्ति धारण करेछे तेम ज्ञाननुं फल विरति पाम्या विना स्वजन्म निफल गुमावेछे. केटलाक जीवो उपरचोटीया वैराग्यथी दीक्षा अंगीकार करी पूना माननी लालचे गच्छमतना कदाग्रहे नड्या छता आत्मस्वरूपमा ज्ञान विना बहिरात्मपद पामता परस्पर एक बीजानी निंदा करी टोळं भेगुं करवानी बुद्धिथी, व्याकरण, न्याय आदि अभ्यास करी एक बीजानुं खंडन मंडन करेछे तेवा साधु. ओ आत्मज्ञान पामी शकता नथी पण जे साधुओना हृदयमा सं. सारनी असारता वसी रहेलीछे, अने शांत मुखाकृतिथी विचरेछे, सदगुरुनु तथा गीतार्थ साधुनी संगति करेछे ते आत्मज्ञान पामी कर्म क्षय करी मुक्तिपद पामेछ, संसारमा वसतां त्याग विरागप' पामधुं मुश्केलछे, त्यागी अने वैरागीपणुं अध्यात्म दशावाळा मुनि. वरो पामी शकेछ, अने आत्मामां अनंत सुख अनादि कालथी तिरोभावे रडूंछे, ते पण आत्मानुभवी भव्यो जाणेछे, काया मा. For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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