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(१०)
ज्ञानयी मोक्ष. श्रावकथी व्याख्यान वांची शकाय नहीं, कारण के ते संसारमा रांची माची विषयसुख भोगवतो संसार असार जाणीने पण पडी रह्यो छे, अहंकारबुद्धिथी परमां अहंपणानी बुद्धि थायछे, हुं मोटो आ सर्व मारुं, मारा समान दुनियामां कोण विद्वान छ ? एवा विचार थायछे त्यां सुधी निश्चयज्ञानीपणुं नथी, शुष्क शा. नीपणुं जाणवू, एवा शुष्कज्ञानी परमात्मस्वरूप तरफ लक्ष आपता नथी अने बहिरात्मपणुं धारी मुक्ति स्थान पामता नधी. ___आत्मज्ञानी लक्षण कहे छे.
“दुहा." वैराग्यादिक गुण वृंद, आतममां प्रगटाय: समभावे निरखे सदा, परमातम पद पाय. ॥२०॥
भावार्थ-वैराग्य, संवेग, समता, सहनशीलता, निलोभता, आदि गुण समूह आत्मामा प्रगटावे अने गुणधारकआत्मा, शमभावे शत्रुमित्र, कंचन, उपल, निंदक, वंदकादिने देखे, त्यारे परमात्म पदनी प्राप्ति थायछे.
“दुहा." त्याग विसंग विना कदी, थाय न आतम ज्ञान; आत्म ज्ञान विना कदी, पामें नहि शिव ठाण ॥२१॥
भावार्थ-संसारपंधनभूतपुत्रस्त्रीधनादिकना ममत्वरूप त्यागाविना अने धैराग्य विना आत्मज्ञान थतुं नथी, अने आत्मज्ञान विना शिवस्थाननी माप्ति नथी, सारांशके-संसारनी मोहमालनो त्याग अने तिस्थिरज्ञान. वैराग्यथी सद्गुरु उपदेशद्वारा आत्मस्वरूप समजी : आत्मस्वरूपमां लीन थायछे, आत्मज्ञानीओने अमुकमा अमुक दोषछे, अमुक क्रोधीछे, अमुक मारो शत्रु, जावी
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