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परमात्मदर्शन ज्ञान पूर्वक क्रिया लेखे छे, ज्ञान क्रिया विना पांगळु छ, अये क्रिया आंधळी छे, ए बेनो संगम था मुक्ति पामी शकाय छे. श्री तीर्थकर महाराजा त्रण ज्ञानना स्वामी छतां चारित्र अंगीकार करे छे, तपश्चर्या अंगीकार करे छे माटे क्रियानी जरुर छे, ज्ञान अने क्रियाथी मुक्ति छे, माटे शास्त्रमा कछु छ के-ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्षः ए सिद्धान्त वाक्यानुसार प्रवृत्ति करवी. मोक्षाभिलाषी भव्यात्मा
ओने द्रव्यानुयोग ज्ञान अत्यंत उपकारी छे, सम्यग् ज्ञानथी बलिहारी छे. ज्ञानरूप सूर्योदय थतां पिथ्यात्व अंधकारनो नाश थाय छे. जेम जेम आत्म स्वरूपनुं विशेष ज्ञान थतुं जाय छे, तेम तेम क्रोध, मान, माया, लोभनी मंदता थती जाय छे. ज्ञानदशा थया विना जीवनी मुक्ति थती नथी, आत्मज्ञानथी मुक्ति थाय छे. शुष्कज्ञानीनां लक्षण कहे छे.
___ "दुहा." वाक् पटुताए विद्धता, जन मन रंजन हेत; पोथी पुस्तक वाचतो, शाश्वत पद क्युं लेत ॥१८॥ अहं बुद्धि अभिमानी, यावत् परमां थाय ॥ तावत् ज्ञानी को नहीं, पामे नहि शिव ठाय ॥१९॥ ___ भावार्थ-मनुष्योनां मन खुशी करवाने माटे वाणीना वाचाल पणामां जेनी विद्वता समायी छे, एवो शुष्क ज्ञानी पोथी पुस्तक वांचतो छतो अने परने उपदेश आपतो छतो मुक्ति पद पामे नहीं, लोकोमा मारी विद्वत्ता दर्शाववी, लोको मारी प्रशंसा करे अने हुँ जगत्मा प्रसिद्ध थाउं आ प्रकारनी इच्छाथी जे ज्ञाननां पुस्तको भगे छे, व्याख्यान वांचे छे, तेवा पुरुषो मुक्तिपद पामी शकता लथी. आत्मभावे ज्ञान परिणमतां परमात्मपदमय आत्मा बने छ।
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