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ज्ञान भने क्रियानों संवाद.
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कां छे के
ज्ञान श्वासोश्वास, करे कर्मनो खेह; पूर्व क्रोड वर्षी लगे, अज्ञाने करे तेह; देश आराधक क्रिया कही, सर्व आराधक ज्ञान.
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इत्यादि विचारी जोतां ज्ञानथी कर्म नाश पामे छे, वळी समकित पण ज्ञानथी उत्पन्न थाय छे, माटे ज्ञानना समान कोइ नथी. ज्ञान बे प्रकारे छे, १ व्यवहार ज्ञान, २ निश्चय ज्ञान. गणीत, व्याकरण, ज्योतिष्य, वैदक, नाटक सायन्स आदितुं ज्ञान व्यवहार ज्ञानछे, एनाथी आत्मानुं हित एकांते थइ शकतुं नथी. षड्द्रव्य तेना द्रव्यगुण पर्याय सात नय, भप्तभंगी, स्याद्वादरीत्या आत्मानुं स्वरूप उपयोगे जाणवुं ते निश्चय ज्ञान छे, आत्मानुं स्वरूप ध्यावुं, व्यवहार अने निश्चयनयथी आत्मानुं स्वरूप जाणी आत्म स्वभावमां रमकुं तेनुं नाम निश्चय ज्ञान छे, ए ज्ञाननी प्राप्तिथी कोटी भवनां कर्म नाश पामे छे, माटे ते ज्ञान आदरणीय छे, ए ज्ञाननी प्राप्ति थतां पश्चात् राग द्वेषनो क्षय थाय छे, जे ज्ञानथी आत्मा परमात्म पद पामे ते ज्ञाननी प्राप्ति पूर्व पुण्ययोगे थाय छे, तेनुं नाग सम्यग् ज्ञान छे, ए निश्चय ज्ञाननुं सद्हेतु श्री सद्गुरु महाराज छे, तथा वीतराग शास्त्र छे, एनुं अवलंबन कर वीतराग शास्त्र कथित सम्यग् क्रियानुं अवलंबन करवाथी कर्म क्षय थाय छे, क्रिया वे प्रकारनी छे १ शुभ क्रिया २ अशुभ क्रिया, जे क्रियाथी पुण्य थाय छे, ते शुभ क्रिया, व्यवहार नयथी आदरवा योग्य छे, जे क्रिया करवाथी पापार्जन थाय छे ते अशुभ क्रिया जाणवी. वीतराग भगवंते सम्यग् क्रिया शास्त्रमां प्ररुपी छे, ते सम्यग् क्रिया जाणवी.
सद्गुरु- सम्यग् ज्ञानश्री सम्म क्रिया जाणी शकाय छे मादे