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परमात्मदर्शन,
(३५)
केवलज्ञान पाम्युं, माटे ते पण क्रियायीज, केवलज्ञान, मुक्ति आदि पाम्यांछे. श्री विजयलक्ष्मीसूरीजीए पण कळे के ध्यानक्रिया मनमां आणीजे, धर्म शुक्ल ध्यायीजेरे; इत्यादि, माटे क्रिया कर्म क्षय करीछे.
ज्ञानवादी - हे क्रियामां राचनार हजी तुं पोतानो मत छोडतो नथी, मारा वचन उपर लक्ष आप, ज्ञान विना ध्यान थइ शकर्तुं नयी जेनामां ज्ञान छे ते ध्यान करी शके छे, जुओ भरतराजा. जेनामां ज्ञाननो सर्वथा अभावछे त्यां ध्याननो अभावछे, जुओ, घट जडछे तेमां ज्ञान नथी, जो, ध्याननुं ज्ञान न होय तो ध्यान शी रीते शके ? प्रथम ज्ञान अने पश्चात् क्रिया, वळी समजनुं के ज्ञान विना जरा पण क्रिया थइ शकती नथी, एक दिवसना जन्मेला बालकने पण स्तन पान प्रवृत्तिम संस्कार बुद्धि कारण छे, सुख दुःखने पण जगावनार ज्ञानछे, ज्ञान रुपराजानी क्रिया दासीछे, माटे ज्ञानना हुकम प्रमाणे क्रिया थइ शकेछे, ज्ञानरूप राजाना करतां क्रिया दासी मोटी कहेवाय नहीं. ज्ञान देखतुंछे, अने क्रिया आंधळी छे, ज्ञान बिना चारित्र नयी, ज्ञान बिना वैराग्य तो नथी, ज्ञान विना देव गुरु धर्मने ओळखी शकाता नथी, अरे विचारो तो खरा, ज्ञानथीज आत्मा पण ओळखाय छे, पण क्रिया ओळखी शकती नयी. ज्ञानथी बीजाना मननी बात जाणी शकाय छे, कोइ अंध पुरुष वनमां फरतो फरे किंतु अंधपणाथी - खाडामां चालतां पण पडी जाय, तेना सामो वाघ आवे तो कइ दिशा तरफ जनुं ते देखी शके नहीं, अने जो देखतो होत तो दुःखथी बचे माठे ज्ञान ते देखता पुरुष समान छे अने क्रिया आंधळा पुरुष समान छे.
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