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परमात्मदर्शन.
(३५) क्रियावादी-हे ज्ञानवादी! तमो मूळ हेतुथी विरुद्ध उतरोछो,
तमारे विचार, के-ज्या ज्या क्रियाछे त्यां अवश्य ज्ञान रघु होयछे, ज्या साकर त्यां साकरनो रस, ज्यां केरी त्यां तेनो रस अवश्य होयछे, तेम ज्यां क्रिया होयछे त्यां अवश्य ज्ञा. ननी अस्तिताछे, मारे ज्ञाने जाणतां क्रिया करती वखत पण गौणभावे ज्ञान होयछे, मुख्यरूपे क्रियाछे, अने क्रियायी कर्मनो नाश थायछे माटे क्रिया तेज कर्मनाशकछे. ज्ञानवादी-हे क्रियावादी तारुं वचन अयुक्तछे, ज्या क्रिया होय
त्यां ज्ञान होय एवी व्याप्ति नथी, फोनोग्राफ वाजींत्रमा क्रिया बोलवानीछे, पण ज्ञान नथी, आगगाडी (अमिरथ) मां गमननी क्रियाछे पण ज्ञान नथी, माटे तारं कथन असत्यछे, वळी जेना माटे तुं क्रिया करवानुं कहेछे ते आत्मा तो अंते सिद्धपणुं पामी अक्रिय थायछे, अने सिद्धमा क्रिया नथी, अक्रियछे, आत्माना घरनी क्रिया नथी, तो ते क्रिया निष्फलछे, सिद्धमा ज्ञानछे, अने ते तो आत्मानो गुणछे माटे
ज्ञानयी मुक्तिछे एम जाण. क्रियावादी-क्रिया आत्मा करेछे, माटे आत्मानीछे, शरीर कंड
क्रिया करतुं नथी माटे क्रिया प्रमाणीभूता कर्मक्षये जाणवी. ज्ञानवादी-आत्मा कंइ फक्त एकलो क्रियाने करतो नथी, शरीर
धारी आत्मा क्रिया करेछे, अने ज्यारे शरीरनो त्याग करी सिद्धपद पामेछे त्यारे क्रियापणुं टळेछे, आत्मा संसारमा कर्मयोगे सुख दुःख योगे त्रण प्रकारनी क्रिया करी शकेछ, व्यवहार नये क्रियानो कर्त्ता आत्माछे, निश्चयनयथी जोतां क्रियाकारक आत्मा नथी माटे आत्मानी क्रिया कही शकाय नहीं. क्रियानादी-अमि लाकडाने बाळी भस्मीभूत करी स्वयमेव शान्त
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