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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३४) ज्ञान भने क्रियानो संवाद. छे ते तने मारवा धारेछे, हवे जो चैत्रने चक्रवेग ओळखतो होय तो चैत्रनो घात करे, अन्यथा तेनो नाश करी शके नहीं. तेम दृष्टांतथी समजवानुं के कर्मनो नाश करतो ते कर्मनुं ज्ञान थया विना बनतो नथी माटे ज्ञानथी कर्मनो नाश मानवो जोइए. · क्रियावादी - फक्त वस्तुनु ज्ञान थवा मात्रथी फलनी सिद्धि यती नथी, एक माणसने भोजन करवानुं ज्ञान थयुं पण भोजननो मुखमा प्रक्षेप करे चावे त्यारे तेनी उदरपूर्ति थाय अने क्षुधा मटे, माटे क्रियाज फलप्रद छे. ज्ञान तो जाणवा मात्र छे, जेम कोइ तारु (तरनार ) जळमां तरवानुं जाणेछे किंतु जलमां प्रवेश करी हाथ पग हलावे नहीं तो बुडी जाय तेम कर्मनुं ज्ञान थतां कर्म नाशकारक क्रिया नहीं कराय तो कर्मनो नाश तो नथी, परंतु क्रियाकरणथी कर्म नाश थाय छे. ज्ञानवादी - तमारुं कथन ठीकछे, किंतु ज्ञान विना वस्तुनुं यथातथ्य स्वरूप जाणी शकातुं नथी, तो पश्चात् ते आदरी शकार्तुं नथी, मोदक बनाववानुं जाणे अने ते भक्षण कर्याथी अमुक फायदो थायछे ते जाणी शकाय तो त्यार बाद करी शकाय, जे वस्तुनुं ज्ञान नथी ते वस्तुनी क्रिया शी रीते करी शकाय ? - दृष्टांत तरीके जागो के - कोई मनुष्यने बीजा मनुये कं के शास्त्रमां आकाशगामिनी विद्या कहीछे, तेनुं ज्ञान थाय तो आकाशमा उडी शकाय, त्यारे पेला मनुष्ये शास्त्रनी शोध करी आकाशगामिनी विद्या जाणी, त्यार बाद क्रिया करी आकाश गमन करवा लाग्यो. अत्र समजवानुं के आकाशगामिनी विधातुं ज्ञान थतां तेनी क्रिया थइ शके, माटे ज्ञाननी मुख्यता छे, ज्ञान बिना कोई क्रिया थई शकती नथी For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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