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परमात्मदर्शन.
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भोगवा अवतार धारण करतां जन्म जरा मरंणनां दुःख प्राप्त थायछे, अवे अवतार धारण करतां पश्चात् ते भवर्मा वळी नवां कर्म बंशय पण कर्म बंधनो पार आवे नहीं,
ज्ञानथी कर्मनो नाशथायछे माटे तेनो स्वीकार करचो योग्यछे. क्रियावादी-अमो क्रियाथी कर्मनो नाश मानीये छीए ते सयुक्त
छ, उत्तम अवतार आव्या विना धर्मनां कार्य थइ शकतां नथी, पडिलेहण, प्रतिक्रमण, प्रभुपूजा, इत्यादि क्रियाओ पापनो नाश करे छे, अने नवीन कर्म प्रतिबंधकद्वारा आत्मा नि.
मळ थतां मुक्तिनी प्राप्ति थायछे माटे क्रिया सफलछे. ज्ञानवादी-धर्मनी क्रिया उत्तम कुळजन्म धनसंपत्ति आपनारीछे, पण तेथी कर्मनी वृद्धिछे. पडिलेहण, प्रतिक्रमण, प्रभुपूजा, पण कर्मनो नाश करी शकती नथी, जरा सूक्ष्मदृष्टिथी वि. चारो के-ज्ञान विना क्रिया करवाथी शुं फल थइ शके ? ज्ञानामिः सर्वकर्माणि, भस्मसात् कुरुतेऽर्जुन ज्ञान अग्नि सर्व कर्म बालीने भस्मीभूत करे छे, माढे हठ कदाग्रह त्यागी, ज्ञान मुक्तिमद मानवू ते योग्यछे. क्रियावादी-क्रिया विना ज्ञाननी उत्पत्ति थती नथी, ज्ञाननो
अभ्यास ज्ञानने उत्पन्न करेछे, प्रथमथी कंई ज्ञान होतुं नथी. विद्याभ्यास करतां करतां ज्ञाननो प्रकाश थायछे, सारमा समजवानुं के ज्ञानाभ्यासरूप क्रियाथी ज्ञान उत्पन थायछे तो "क्रियाथी कर्मनो नाश थाय एमां कंइ शंका नथी, माटे क्रि
याथी कर्मनाश मानवो योग्यछे. शानवादी-ज्ञान विना सर्वत्र अंधारूं, जे कर्मनो नाश करवानोछे
ते कर्मनु स्वरूप जाण्या विना कर्मनो नाश शी रीते थाय ? चैत्रने मैत्र नामना पुरुषे कडं के, तारो चक्रवेग नामनो शत्रु
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