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ज्ञान भने क्रियानो संवाद.
भटक्या, भटके छे, अने भटकशे, अने परमात्पश्द केम पामी शके, साध्य सापेक्षताए क्रिया सफल छे, एम एकांत बाह्य क्रियायी जडात्माओ इष्टफळ जे मोक्ष ते पामी शकता नथी.
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"" दुहा.
कोइ ज्ञानने मानता, ज्ञान सत्य जग सार; विना ज्ञान क्यां मुक्तिफल, ज्ञाने भवजल पार॥१५॥ एकांते एम जे ग्रहे, करे कदाग्रह चित्त; आत्मतत्त्व पाम्या विना, होय न तत्त्व प्रतीत ॥ १६ ॥
केटलाक भव्यात्माओ ज्ञानने मुक्तिप्रद माने छे, आत्मतत्त्वना ज्ञान बिना मुक्ति नथी, ज्ञानथी संसार समुद्र तरी शकायछे, आत्मतत्त्वना बोध विना जे भव्यो एकांते हृदयमां हर कदाग्रह धारण करी स्वेच्छार प्रवर्ते छे, ते परमात्मपद पामी शकता नथी, आत्मतत्त्व पाम्या विना मोक्षनी प्राप्ति थती नथी.
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दुहा
युवत्यंग निरख्या थकी, विषय तृपिं नहि थाय; भोजनज्ञान थया थकी, भूख न भागे भाय ॥१७॥
भावार्थ - युवतिना अंगनुं निरीक्षण करवाथी विषयिपुरुषोने विषयी तृप्ति यती नथी, तेमन बरफी, दूधपाक, मिष्टान्न भोज ननुं जाणपणुं मात्र थवाथी, उदरपूर्ति यती नथी, माटे तेनी क्रिया कराय तो इष्ट फलनी सिद्धि थाय छे, माटे क्रियानी मुख्यताए फल सिद्धि छे.
ज्ञानवादी - क्रियावादी ! तमो क्रियाने फलदायक कहोछो ते युक्त नथी, क्रिया करवाथी संसारनी वृद्धि थाय छे, रांध,
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