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परमात्मदर्शन.
युद करवू, ए आदि क्रिया छे तो तेथी मुक्ति नथी, किंतु कर्मबंध छे, माटे क्रिया संसारदिहेतुभूत छ, माटे ज्ञान
तेज सार छ, कर्मक्षय ज्ञानथी थाय छे. क्रियावादी-क्रिया यकीज मोक्ष छे, क्रिया बे प्रकारनी छे, १
कर्मकिया. २ धर्मक्रिया, जे क्रियाथी संसारमा परिभ्रमण करवू पढे अने आश्रवनुं ग्रहण थाय ते कर्मक्रिया जाणवी, तेनो तो त्याग करवो योग्य छे. पण जेनाथी जन्म जरा मृत्युना दुःख नाश पामे एवी धर्म क्रियाओ कही छे, ते करवी जोइए, कारण के तेनाथी कर्मनो नाश थाय छ, किंतु
ज्ञान थकी थतो नथी माटे क्रिका तेज मोक्ष मार्ग छे. मानवादी-धर्मने माटे क्रियानी जरुर नथी, आत्मानी मुक्ति तो ज्ञानयी थाय छे, शरीरनी क्रिया, वचननी क्रिया शुं मोक्ष आपी शके ? ना नहीं. मननी क्रिया विकल्परूप मोक्ष भापी शक्ती नथी, किंतु आत्मानुं ज्ञान थवाथी मुक्ति प्राप्ति छे, ज्या ज्या क्रिया त्यां कर्मनो बंध समजवो, कारण के क्रिया जड छे तो तेथी उत्पन्न थनार फळ पण कर्म जडछे,
तो मुक्ति क्याथी मळे १ माटे ज्ञानथी मुक्तिनी सिद्धता छे. क्रियावादी-क्रियाने जड कहो किंतु क्रियाधी जडनो नाश थाय
छे, कारण के सजातियथकी सजातियनो नाश. थायछे, इंटनो नाश मोगरथी यछे, तेम कर्मछे ते जडछे तो तेनो नाश क्रियाथी थायछे माटे क्रियाथी नाश थवो तेज मोक्ष जाणवू, ज्ञानथी कर्मनो नाश शी रीते थाय? माटे कर्म ना. शिका क्रिया जाणवी, मानसिक, वाचिक, कायिक क्रिया करवायी कर्म नाश थायछे, माटे ते करवी जोइए अने क्रिया ज मोक्ष फलदारे.
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