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परमात्मदर्शन. ईश्वर कर्ता वादिनु, वदवू युक्ति हीन; जड.ईश्वरना धर्म बे, वर्ते निशदिन भिन्नः ॥२०५॥ भिन्न धर्म बेना सदा, भिन्नधर्मी पण दोय; निराकार साकार एक, रूपी अरूपी जोय. ॥२०६॥ चेतन शक्ति अनन्त छे, पुद्गलशक्ति अनन्त; वेतनशक्ति ज्ञातृता, जडता पुद्गलतंत. ॥२०७॥ निजस्वभावे शक्ति त्यां, कोइ नही परतंत्र; निश्चयनयथी जाणीए, ज्ञानी एम वदंत. ॥२०॥ अनन्त शक्ति अस्तिता, निज द्रव्ये वर्ताय% पर अपेक्षाए ग्रही, नास्तिता एम थाय.. ॥२०९॥ अनन्त शक्ति अस्तिता, नास्तिताज अवलोय; पदव्ये व्यापी सदा, निश्चयथी ए जोय. ॥२१॥ चेतनथी जड जो बने, तो खरशृंग जणाय; स्वम सुखलडी सत्यरूप, सत्य विचारो न्याय.॥२१॥ अनन्त शक्ति इशनी, ईश्वरमांहि समाय;, कूपनी छाया कूपमा, तद्वत् जाणो न्यायः ॥२१२॥ जडनी शक्ति अनन्त छे, पुद्ग्रल धर्मे जोय; वर्णादिक तेमा रह्या, अन्य न कर्ता कोयः ॥२३॥ आत्मापेक्षाथी अहो, जडनी शक्तिज लेश; सापेक्षा अवबोधीने, लहो न मनमां क्लेश..॥२१॥
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