________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(२९९ )
ईश्वरकरकिरण.
तालपूट विष लेशथी, दस्ती प्राण हणाय; निमिजना धर्मे वहुं, अनेकान्तमतन्याय. ॥२१५ ईश्वरथी सृष्टि बने, कदी नहीं कहेवाय; समज समजे सानमां, सद्युक्ति मन लाय ॥ २१६ ॥ जीव कहो चेतन कहो, अर्थ एकनो एक; ईश्वरसम ले आतमा, कर्त्ता इश न टेक ॥११७॥ लक्ष चोराशी योनिमां, अटता जीव अनन्त; कर्माष्टकना योगथी, पामे दुःख अनन्त ॥११८॥ काल अनादिथी ग्रही, जीवे कर्मनी राश; बांधे छोडे कर्मने, करतो परनी आश. भवितव्यतायोगथी, थावे कर्म विनाशअविचल आत्मस्वरूपनो, सहेजे थाय विकास ॥१२०॥ इशु विभु परब्रह्म छे, परमेश्वर सुखधाम; सोऽहं सोऽहं पद लब्धुं तेने करूं प्रणाम. ॥१२१॥ जीवो कर्म क्षपणथकी, अनन्त ईश्वर वाय; एकानेक सिद्धात्मनी, ज्ञानी कुंची पायः ॥ २२२॥ कर्म खप्याथी सारिखा, समजे ज्ञानी विवेक; व्यक्ति स्वरूपे भिन्नता, गुणव्यपेक्षा एक. ॥२२३॥ रागदोष जेने नथी, नहि रमता परभाव; अवन्त्व आत्मस्वरूपमा, रमता शुद्ध स्वभाव ॥११४॥
For Private And Personal Use Only
॥११९॥