________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(३५०)
ईश्वरजगत्कर्तृत्वनिराकरण,
शुद्धशक्तिछे वस्तुमां, वर्ते काल अनादि, आविर्भाव कराववा, निमित्तहेतु उपाधि ॥९९५॥ आविर्भाव जे धर्मनो कार्यरूप ते थायः
॥१९७॥
घटनुं कारण मृत्तिका, अनन्य कार्य काय. ॥१९६॥ घटनो नाश कर्याथकी, होय न कारण नाश; कारण नित्यपणे रहे, मृत्तिकारूप खास . काल स्वभावने नियति, कर्म उद्यम ए. पञ्च कार्य प्रति कारण सदा, धरो न मनमां खं• ॥१९८॥ राग दोष जेने नथी, ते ईश्वर कहेवाय; तेने इच्छा जो कहो, तो ईश्वरता जाय
For Private And Personal Use Only
J
कृत्य कृत्य ईश्वर थया, तेथी शुं इच्छाय; इच्छा ज्यां त्यां रागद्वेष, रागदोष दुःख पाय. ॥ २००॥ रागदोष सहचारिणी, इच्छा भवनुं मल; ईश्वरने इच्छा कहो, ददा मोह प्रतिकूलइच्छा नहीं त्यां सुखशुं कदेशे जन जो कोय; शर्म अनंतु समाधिमा, इच्छा त्यां नहि होय. ॥ २०२ ॥ जडवस्तुज ईश्वरथकी. बने नहि कोइ काल;
॥२०१॥
जड़ स्वभाव न इशर्मा, घर मनमांहि ख्याल. || २०३ ॥ ईश्वर शक्ति अनन्तछे, जडनी शक्तिज लेश; सृष्टि बने इशथी, युक्ति लहो ए बेश ॥ २०३ ॥
*
॥ १९९॥