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परमात्म
॥ १८९॥
पुङ्गल द्रव्य अनादिछे, तथा जीव पण जाण; नियथी वे भिन्नछे, भिनशक्ति पण आण ॥१८५॥ जडमां चेतन परिणमे, जाणो नय व्यवहार; rantara ज्ञान वण, लहो न सम्यक्सार. ॥१८६॥ काल अनादि द्रव्य षट् कर्त्ता ईश्वर केम; ईश्वरशक्ति नित्यवा, अनित्य शुं त्यां एम. ॥१८७॥ कर्तृत्वशक्ति नित्य तो, नित्य जगत् निर्माय, कर्त्ता शक्ति अनित्य तो, क्षणमां विणशी जाय ॥१८८॥ कर्तृत्वशक्ति यादृशी, तादृश कार्यज थायः चित्यानित्य विकल्पथी, बे पक्षे दूषाय. ईश्वर साकारी कहो, तोपण दोषित याय, पूर्वापर विचारतां, दोषो बहुला आय. नैयायिकवादी कहे, कर्ता ईश्वर सत्यः पण मुक्तिथी लेखतां, लागे तेह असत्य. ईश्वर इच्छाथी कदा, सृष्टि नहीं निर्माय; निमित्त इच्छा जो कहो, केम स्वभाव न थाय. ॥१९३॥ का विनिगमनात्यां लहो, करो कदाग्रह दूर; स्वभावयुक्तिथी ग्रहो, तो नहि दोष जरूर ॥१९६॥ उपादान मध्ये रही, तिरोभाव जे शक्ति, तेवी आविर्भावता, परिपूर्ण निजव्यक्ति ९९
॥ १९०॥
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