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कर्तृत्ववाद निराकरण.
श्लोक. कृत कर्मक्षयो नास्ति, कल्पकोटीशतैरपि; अवश्यमेव भोक्तव्यं, कृतं कर्म शुभाशुभं. ॥१॥
कोटी कल्पशते पण पुण्य पापरूप जे कर्म कर्याछे ते भोगगव्या विना छुटको नथी. त्यारे ईश्वर जीवोनुं पाप पोते शी रीते ग्रहण करे, ईश्वर जीवोना पापपुण्य लेतो नथी. जीवो शुभ कर्म अने अशुभ कर्म करी स्वयं कर्मना उदयथी तेनुं फल भोगवेछे, ईश्वर पेदा करेछे. ईश्वर संहरेछे एम अज्ञानथी आच्छादित दृष्टिवाला जीवो मानीने मुंझायछे, जगत् कर्ता ईश्वर आ प्रमाणे जोतां सिद्ध थतो नथी. अन्यत्र पण भगवद्गीतामां ईश्वर अने प्रकृति (जगत् ) अनादिकालथी छे एम कयुछे ज्यारे बे अनादिकालथी छे त्यारे प्रकृतिनो कर्ता ईश्वर शी रीते सिद्ध ठरेः अर्थात् सिद्ध . रतो नथी. तत् पाठः भगवद्गीता अध्याय १३ त्रयोदश
श्लोक. प्रकृति पुरुषं चैव, विद्धयनादी उभावपि; विकाशंश्चगुणांश्चैव, विद्धि प्रकृतिसंभवान् ॥ १९॥
पुरुष (परमात्मा ) प्रकृति ( जगत् आवे अनादिकाळथीछे एम जाण. सत्व रजो अने तमोगुण तथा विकारो प्रकृतिज छे एम जाण आ उपरथी पण सिद्ध थायछे के अनादिकालथी आत्मा अने कर्मछे. तेम जगत् पण अनादिकाळथी छे. अद्वैतवादी ब्रह्मसत्यं जगत् मिथ्या एक अद्वितीय ब्रह्मज मानेछे. ते जमत्नो कर्ता इश्वर अन्य मानतो नथी आ जगत् देखायछे ते भ्रांति मात्रछे. त्यारे तेनो बनावनार ईश्वर केम कहेवायः एम अद्वैतवादियो मानेछे. जैनदर्शन जगत्ने जगत् स्वरुपे सत् मानेछे. पण जगत् अनादिथीछे. सत्यात्
अन्यमिथ्या एक अद्वितीय अनादिकाळयी छे.
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