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परमात्मदर्शन
( ३५९ )
तनपक्षवाळा तथा आर्यसमाजीओने भगवद्गीता मान्यछे. तेमां पण केटलाक लोको प्रक्षिप्त भगवद्गीतामांछे एम आर्यसमाजी भो मानेछे. भगवद्गीतामां पण ईश्वर जीवोने सुख दुःखनो न्याय आपतो नथी. एवं मान्छे. तथा जगत्कर्तापणुं ईश्वरमां नथी एवं स्वीकार्य है. शिष्य- हे सद्गुरो भगवद्गीताना कया अध्यायम तेम दर्शाव्छे
ते जणावशो
सद्गुरु-स्वच्छ चित्तथी श्रवण कर.
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भगवद्गीता अध्याय पंचम १४ चर्तुदश श्लोक ॥ श्लोक.
11:28 11
न कर्तृत्वं न कर्माणि, लोकस्य सृजति प्रभुः न कर्मफल संयोगं, स्वभावस्तु प्रवर्तते नाद कस्यचित् पापं नचैव सुकृतं विभुः अज्ञानेनाssवृतं ज्ञानं, तेन मुह्यन्ति जंतवः ॥ १५ ॥
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प्रभु ईश्वर परमात्मा लोकनां कर्मोने बनावता नथी तथा लोकनुं ( जगत् नुं ) कर्तृख पण ईश्वरमां नथी. अर्थात् दुनियाने ईश्वर परमात्मा रचता नथी. तेमज जीवोने पुण्य पापनो संयोग कराबनार ईश्वर नथी. तेमज पुण्यपापनुं फल आपनार पण ईश्वर नथी त्यारे जगत् कर्म विगेरेनुं शुं समजनुं तेना प्रत्युत्तरमां जणावेछे के जीवोने कर्मना स्वभावथी सुखदुःख थया करेछे. जगत् अनादिकालथी के एम रेनो स्वभावछे. जेवां जीवो कर्म करेछे तेवां फल स्वभाव प्रमाणे भोगवेछे. ईश्वरने तेमां लेवा देवा नथी. तेम छतां जीवो ईश्वरने कर्त्ता मानी मुंझायछे. पन्नरमा श्लोकमा स्पष्ट जणावे छेके. ईश्वर कोइनां पाप पुण्य ग्रहण करतो नथी कोइ जीवे पाप कर्यु होयतो ते टाळवा समर्थ नथी. उपनिषद्मां कछे के
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