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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मदर्शन." सत्पणाथी जे वस्तु सत् होय? ते अनादिथी छे. जेम षड्द्रव्य. जिनदर्शनमा षड्द्रव्य सत्छे. हवे मूळ विषय जगत् कर्ता ईश्वर सं. बंधी निराकरणनोछे. वेदांत ग्रंथाधारे जोता पण केटलेक स्थाने ईश्वर कर्तृत्व स्वीकार्युछे. अने केटलेक ठेकाणे जगत्नो बनावनार इधर नथी एम स्वीकार्युछे. अन्य दर्शनपण जिन दर्शनना सिद्धा. सनो केटलाफ अंशे अनुसरेछे. हवे जिनदर्शनमां जगत्कर्तृत्व ईश्वर संबंधी केवी मान्यता छे ते बतावेछे. " दुहा." ईश्वरना बे भेदछे, जीव सिद्ध बे जाण; का निज निज कर्मना, जीवो मनमांआण ॥१६॥ निजने सुखदुःख आपतो, जीवज करी नवकर्म; कर्ता भोक्ता जीवछे, ईश्वर कर्ता मर्म. ॥१६९॥ चेतन ईश्वर जाणीए, नय व्यवहार प्रमाण अशुद्ध नय ईश्वर कथ्यो, सापेक्षा मन आण. ॥१७॥ का परपरिणामथी, चेतन ईश्वर जोय; शुद्ध निश्चय नयथकी, कर्म करे नहि सोय. ॥१७१|| सुख कर्ता निज भावथी, दुःख कर्ता परभाव; परपरिणतिना नाशथी, कर्ता निजगुण दावः ॥१७२॥ सापेक्षा समजे नहीं, पक्ष ग्रहे एकात; ईश्वर का मानता, निरपेक्षाथी भ्रान्त, ॥१७३॥ कर्म मेल जेने नहीं, निराकार भगवान कयु प्रयोजन इशने, कर निश्चयथी ज्ञान- ॥१७॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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