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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra - ( १६ www.kobatirth.org गुरूने नमस्कार. 66 दुहा. (4 " " 11911 काल अनादि परिणभ्यो आतम जडने संग; अशुद्ध परिणामे करी, करतो नाटारंग, पोताना अज्ञानथी, पाम्यो दुःख अनंत; स्वपदज्ञानाति ग्रही, थयो सिद्ध भगवंत, ॥८॥ भावार्थ - अनादि कालथी जीव कर्माष्टक ग्रही औदारिकादि शरीर ग्रही जड संगे दुग्ध पयोवत् परिणम्यो छतो अने ते कर्मना योगे पोताना आत्माना थयेला अशुद्ध परिणामे करी चतुर्गति रूप संसारमा जन्म जरा मरणनां दुःख ग्रही नाटारंग करतो फर्या करे छे, आत्मानो शुद्ध परिणाम थतां भव प्रपंचनी बाजी नाश पामे छे, पोताना एटले आत्माना अज्ञानयी जीव अनंत दुःख पायो. शरीरने आत्मा मानी बहिरात्मभावे रमतो फरतो पोतानुं स्वरूप भूल्यो, दुःखनो समुह पोताना अज्ञानथीज प्राप्त थाय छे. पण सद्गुरु समागमे आत्मस्वरूप जाण्युं तेमां रमणता करी कर्मनो नाश कर्यो, अने मोक्ष स्थाननी प्राप्ति करी सिद्ध भगवंत थयो ए सर्व आत्मज्ञाननुं फल छे. दुहा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 99 जेनाथी निज आतमा, समजायो सुखकंद; त्रिकरण योगे भावथी, नमुं गुरू क्रमऊंड. ॥ ९ ॥ सुखकंद अनंतगुणविशिष्ट आत्मस्वरूप जे गुरुना बोधथी समजायुं ते सद्गुरु महाराजना चरण कमळद्वयने भावी मन वचन अने कायाए करी नमस्कार करुछु आत्माने ओळखावनार गुरु छे, गुरु पण आत्मा छे अने भोता पण आत्मा छे, किंतु For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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