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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३४०) सि. जाणेछे पण तेथी ते सिद्धना जीवो सदाकाल न्यारा प्रवर्तेछे. प्रश्न-सिद्ध भगवान् कोइ दुःखीने देखी दया मनमा लावे के नहीं ? नत्तर-सिद्ध भगवानने मन नथी. दुःखी मनुष्यादि सर्वने जाणेछे पण तेओ कर्मथी रहीत थवाथी अक्रिय थयारे. तेथी कंइ पण कार्य करता नथी. अने दुःखी मनुष्यन दुःख दूर करवा संसारमा आवता नथी. सर्व जीव पोताना करेलां शुभाशुभ कर्मथी सुरवी दुःखी थायछे, कोइर्नु दुःख दूर करवा कोइ समर्थ नथी. करेलां कर्म पोतानेज भोगवां ज पडेछे. केटलाएक मतवादी एम कहेछे के सिद्ध परमात्मा अन्य जीवोनां दुःख दूर करवा संसारमा अवतार लेले एम तेमनुं कथनछे. निरंजन निराकार परमात्मा गमनागमननी क्रिया रहित थयाछे. कर्मनो नाश करवाथी. माटे परमात्मा अवतार ग्रहण करेछे एम जे कोइ कहेछे ते अज्ञानी जाणवो. सिद्धना जीवो पोतानी अवगाहना लेइ सदाकाल अनंत सुरखमां मन्न रहेछे, निश्चय चारित्र सिद्धना जीवोमां स्थिरतारूप समये समये अनंत छ. सिद्धता विना सांसारिक दशामां परस्वभावमा रमणता करवाथी किंचित् पण सुख नथी कांछेकेहूं एनो ए माहरो, ए हुँ एणी बुद्धि; चैतन जडता अनुभवे, न विमासे शुद्धि. आतम॥१॥ ___ सांसारिकभाव एज हुँ छु, अने ते माराळे. आ बाह्य पदार्थो तेज हुँ एवी बुध्धिथी चेतन जडनो संगी थइ जडता अनुभवेछे अने पोताना आत्मानी शुद्धि विमासतो नथी. एवी संसार दशामां राग, द्वेष, कलह, ममतानो संगी थएलो जीव कंइ पण सुख पामी शकतो नथी. कोइपण जीव वाद्य पदार्थोथी सुख पाम्यो नथी. अने पामवानो नधी, आ प्रमाणे आत्मार्थी पुरुषो समजी दृढ नि, For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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