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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मबंधन, ( ३३९ ) सहज स्वाभाविक आत्मिक गुणानंतनी आविर्भावतारूप सिद्धतानुं हेतु सम्यग्ज्ञानछे. सम्यग्ज्ञाननी प्राप्ति बिना भवसंततिनी उच्छेद तो नथी. ते सम्यग्दर्शननी प्राप्ति विना सम्यग्ज्ञान कही शकातुं नथी. अनेकांत स्याद्वाद सत्तामय आत्मस्वरूपादि पदार्थोनुं यथार्थ भासनपणुं, श्रद्धानपशुं थाय त्यारे समकित कथायछे अने समकित पूर्वक जे जाणपणुं ते सम्यग्ज्ञान कहेवायछे सम्यग्ज्ञाननी प्राप्ति रूपसूर्य जे भव्यजनना हृदयमां प्रगटयोछे तेने मिथ्यात्वरूप अंधकार आच्छादन करी शकतुं नयी ज्ञानरूप सूर्योदयथी सर्व पदार्थोनो भास थाय छे. त्यारे मोक्षमय आत्मा स्वयमेव प्रकाशेछे. अने कर्मनो नाश थाय छे. नवमां जीवतत्त्व आदेयछे, संवर निर्जरा मोक्ष ए ऋण तत्र उपादेयछे, पुद्गल द्रव्य अजीवछे, पुण्य पाप पुद्गल स्कंधोछे. ते पुद्गल स्कंधोने आत्मा पोताना स्वरूपमां रमतो दूर करेछे. ज्यारे आत्माना असंख्य प्रदेशोनी साथे कर्मरूप पुद्गल स्कंधोनो एक परमाणु सरखो पण रहेतो नथी. त्यारे आत्मा निरावरण निर्ममपद प्राप्त करी सादि अनंत स्थिति पामेछे. एक समयमां गुणस्थानातीत थल आत्मा आकाश प्रदेशनी समश्रेणिए अन्यमदेशोने स्वयविना सिद्धिस्थानमां विराजेळे. त्यां सिद्धमां किंचित् दुःख नथी. दुःख सर्व पुद्गलना संयोगथीछे. निर्मल परमात्माने परमाणु मात्रनो संबंध नथी. तेथी त्यां लेश पण दुःख नथी. आधि व्याधि अने उपाधि ए त्रण प्रकारनां दुःखथी रहित आत्मा अनंत सुखमय वर्ते. सर्वथा प्रकारे दुःखनो अभाव मुक्तिस्थानमा छे. अनंत सिद्धजीवो लोकना अग्रभागे विराज्याछे. अने तेओ सदाकाल आत्मस्वभावमां रमण करेछे. अनंत ज्ञानदर्शन चारित्ररूप रत्नत्रयीनी लहेरमां स्वगुण भोगवेछे, त्यांथी कदापिकाळे संसारमां पाछा आवी जन्म मरण धारण करता नथी. सर्व जगत्ने ज्ञानथी For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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