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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३२८ ) अह्नास्वरूप. सर्व शौचोमां उत्तमछे तेने धारण करेछे. धर्मध्यान अने शुक्लध्यान ए वे ध्यान आत्मकल्याणकारीछे. तेमां शुक्लध्यान मुक्ति प्रदाताछे. मन वचन अने कायाना दुष्ट योगनो जय करवो तेने शौच कछे वळी हेय, ज्ञेय अने उपादेयनो विवेक तेने उत्तम विवेक कहेछे. ते शौचने दीक्षा अंगीकार करी मुनिवर्यो धारण करेछे. बार प्रकारे तप करवो ते पण शौच जाणवो, श्री सर्वज्ञ कथित दीक्षामा दयादिक सर्व कृत्य शौचरूप शरीरनी अंदर रहेला आत्मानी शुद्धि करनारछे. निश्चय चारित्र आत्मस्वभावमयछे एटले आत्माथी भिन्न नथी ते चारित्रनी प्राप्ति माटे व्यवहारे चारित्रकारणीभूतछे, आ संसारमा केटलाक जीवो धर्मनुं नाम पण जाणता नथी अने तदनुकूल प्रयत्न पण करता नथी. संसारमा मोटा कहेवाणा एटले पोताने धन्य मानेछे. पण पोते जीवादिक तत्त्व जाणता नयी अने सांसारिक कार्योंमां अहर्निश गुंथाया रहेछे, पण धर्माराधन परायण थता नथी. धर्मनुं आराधन करी आत्माने कर्म - धनी छोडाववो एज उत्तम पुरूषोनुं लक्षण छे. बाकी धन, पुत्र, लक्ष्मीनी वृध्थिी पोतानी वृधि मानी अहंभावां वर्ततुं ते तो अधम पुरूषोनुं लक्षणछे. श्री भरतराजा, राम, पांडवो विगेरेए अंते आ संसारने असार समजी आत्महितमां प्रवृत्ति करी तेम भव्य जीवोए पण अधुना सारमां सार दीक्षानुं अवलंबन करं जोइए. दीक्षा ग्रद्या विना आश्रवमार्गनो रोध थतो नथी. आ संसारने ज्ञानी पुरूषोए बळता अग्नि समान कह्योछे, बाजीगरनी बाजी जेवुं आ संसारनुं स्वरूप जाणी विवेकी मनुष्य चारित्रमार्ग ग्रहण करेछे. मारु मारु मानता एवा अनेक जीवो मायाना वश ज्ञानलक्ष्य सत्य आत्मस्वरूप भूली यमराज वश थया अने थायछे. जेम समुद्रमां पाणीना अनेक तरंगो उत्पन्न थायछे अने पश्चात् विलय For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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