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परमात्मवान. क्षा अंगीकार करी मुनिवर्यो मनवचन अने कायाथी परिग्रह धारण करवो नहीं परिग्रह धारण कराववो नहीं. अने परिग्रह धारण करता होय तेनी अनुमोदना करवी नहीं. __छठं रात्रीभोजन विरमणव्रत कहेछे. रात्रीना समयमां मुनीश्वर अशनपान, खादिम अने स्वादिम ए चार प्रकारना आहारनो त्याग करेछे. श्रीवीरप्रभुए रात्रीभोजनमां महा दोष कथ्योछे, माटे आत्मार्थी जीव रात्रीभोजन करे नहि. योग शास्त्र, वर्धमान देशना, आदि ग्रंथोमां तथा सूत्रोमां रात्रीभोजन करवाथी महादोष बताव्याछे. वळी अन्य दर्शनीओना शास्त्रमा पण रात्रीभोजन करवाथी दोष बताव्याछे. माटे मुनिवर्यो दीक्षा ग्रही रात्रीभोजननो त्याग करेछे. ए रीते पंच महाव्रत अने छटुं रात्रीभोजन विरमणव्रतर्नु अत्रतो संक्षेपथी स्वरूप प्रसंगोपात देखाडयु. आ प्रमाणे मूल व्रत अंगीकार करे, अने चरण सित्तरी करण सित्तरीरूप उत्तर भेदतुं आराधन निग्रंथ मुनिवर्य करे. श्रीसिद्धसेन दिवाकरमूरिकृत प्रवचन सारोद्धारमा चारित्रना मूळ भेद उत्तरभेदनुं तथा चारित्रना उपकरणोनुं विशेषतः वर्णन कर्युछे त्यांथी जिज्ञासुए विशेष अधिकार जाणबो. हवे दीक्षा अंगीकार करी कषायना निग्रहरूप शौच मुनीश्वर धारण करेछे. क्षमाथी क्रोधनो पराजय करेछे. अने नम्रताभावथी माननो पराजय करेछे अने सरलताथी मायानो नाश करेछे. अने संतोषथी लोभनो नाश करेछे. वळी पांच इंद्रियोना विषयो जीतवारूप शौच मुनीश्वर धारण करेछे. प्रमादनो त्याग करवो ते रूपशौचने दीक्षा अंगीकार करीधारण करेछे.प्रमादथकी चौद पूर्वी पण संसारमांपडया माटे आलस्य, निद्रा, विकथा, पारकी निंदा आदि प्रमादनो नाश करी मुनीश्वर अप्रमत्तपणे रहेछे. वळी मुनीश्वर ध्यानरूप शौच जे
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