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( ३२६ )
परिग्रह.
दुःखज समायुंछे. बळी परिग्रह धन उपर ममता भाव राखी मनुष्य मरण पामी सर्प, उंदर, गीरोलीना अवतार पामेछे. वळी परिग्रहनी ममताथी मातपिता भाइ परस्पर लडी मरेछे. वळी परिग्रह धनरूप वृद्धि पामेछे त्यारे तेने साचववानी पण चिंता रहेछे. रखेने चोर विगेरे लड़ जाय एवी चिंता तेना मनमां रहेवाथी सुखे करी उंघपण आवती नथी, परिग्रहथी आरंभ, समारंभ करी कर्मोपार्जन जीव करेछे. परिग्रहधारी खरेखर जडवस्तुने पोतानी मानी छेतरायछे. माटे वैरागी आत्मार्थी जीवो परिग्रहनो त्याग करी दीक्षा ग्रही पंचमहाव्रत अंगीकार करेछे. अने पुत्र स्त्री मातपिता विगेरे संसारी कुंटुंबनो संबंध छोडेछे अने स्वस्थ चित्ते हुं एकलो छं. आत्माथी अन्य मारू नथी अने हुं कोइनो नथी एम अदीन मना थइ आत्माने शिखामण आपेछे. सद्गुरूने धारण करेछे. संयमनी रक्षा अर्थे वस्त्र, पात्र, पुस्तक, रजोहरण, मुखवस्त्रिका, धारण करेछे. संयमनां उपकरण राखवाथी परिग्रह कहेवातो नथी. कहुंछे के मुच्छापरिग्गहोत्तो, नायपुत्त्रेण ताइणा;
श्री ज्ञानपुत्र वीरप्रभुए मुच्छाने परिग्रह ग्रह्मोछे. माटे हठ कदाग्रह करवो नहीं. एम मुनीश्वर परिग्रहनो त्याग करी निर्विकल्प मन करी आत्मज्ञानमां मत्र रहेछे, अने मुनीश्वर विचारे के आ बाह्य परिग्रह त्यागी मुनि आत्मानी रूद्धि तरफ लक्ष आपी जुवेछे तो त्यां अनंतज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत चारित्र, आदि रूद्धि भरेली छे अने ते रूद्धि अविनाशीछे. पोतानाथी कदी जुदी पडवानी नथ अने ए रूधि प्राप्त थवाथी सहज शांति अनुभवायछे, एम आत्मा ए जायुं त्यारे आ बाह्य जड रूधिरूप परिग्रहनो त्याग कर्यो. अने आत्मिक रूध्धि मेळवावा प्रयत्न करवा लाग्या, ध्यानादिको अभ्यास करवा लाग्या, ए पांचमुं परिग्रह विरमण व्रत दी
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