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परमात्मदर्शन.
( ३२५ )
क. त्यां वेश्याए पोतानुं शरीर देखाय अने विषयाभिलाप थाय तेम नाच कर्यो, कामोत्पादक अनेक प्रकारनां गायनो गायां तो पण मुनिवर्यश्री स्थूलभद्र जरा चलायमान थया नहीं अने विषमां रागीएवी वेश्याने पण वैरागी बनावी. अने ते वेश्याने श्रावनां वार व्रत उच्चराव्यां. अहो आश्वर्थनी बात छे के, कामनो नाश करवा महामुनियो पर्वतनी गुफाओमां तथा एकांत जग्याओ मां गया, केमके त्यां काम आवी शके नहि माटे. त्यारे स्थूलभद्र मुनिवर तो कामना गृहमां प्रवेशी कामनो नाश कर्यो. अहो केटलं
मनुं सामर्थ्य ? एवी रीते भव्यजीवोए उत्तम चरित्र श्रवण करी विषय, काम, मोहनो नाश करवो अने ते प्रति जरा मात्र पण इच्छा करवी नहीं अने मन, वचन, कायाथी शुद्ध ब्रह्मचर्य व्रत पाळं.
हवे पांच सर्वतः परिग्रह परिमाण विरमण व्रत कहेछे. श्री मुनीश्वर महाराजा धनधान्यादिक नव विध परिग्रहलो त्याग करे छे, कारण के विकल्प संकल्पनुं कारण परिग्रहछे. परिग्रहथी क्रोध, मान, माया, लोभनी उप्पत्ति थाय छे. जेम वहाण अतिशय भारथी समुद्रमां बुडेले परिग्रहनी वृद्धिथी रागद्वेषनी वृद्धि थाय छे. परिग्रहथी दुनीयामां मनुष्य एटली बधी गुंतवणमां आवी पडेछे के तेने जरामात्र पण शांति मळती नथी. वळी धनधान्यादिकनी वृद्धि थी मोटाइ वधेछे. मनमां मान आवे छे. बळी अदेखाइ पण प्रगट थाय छे. वळी परिग्रहनी प्राप्तिना कारणथी प्राणातिपात, असत्य, चोरी, आदि पापस्थान कोनुं सेवन करी कर्मार्जन करी जीव अधोगतिमा अवतरी त्यां छेदन भेदन ताडन तर्जन शोक, वियोग क्षुधा, तृषा, आदि विविध दुःखो भोगवे छे. वळी परिग्रहथी अज्ञानीजीव धर्म साधन करी शकतो नथी परिग्रह मेळववामां केवळ
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