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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org परमात्मदर्शन. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३१९ ) पामेछे तेनी पेठे अनादिकालथी आसंसारसमुद्रमां देव मनुष्य तिर्यच अने नारकी तरंगे करी जीव अनेकशः शरीर छोडतो अने अनेकशः शरीर धारण करतो वर्तेछे. पण अज्ञान दशाथी पामर जीवनी - क्ति थइ नहीं. पण ज्यारे आत्मानुं स्वरूप जाणवामां आवेछे त्यारे आत्मा संयममार्गयोगे धर्मना आविर्भाव अर्थे प्रयत्न करेछे, ज्यारे चारित्रमोहनीय प्रकृतिनो क्षय थायछे त्यारे चारित्र आत्मामां मगदे छे. कोइ जीव चारित्र मोहनीयने उपशमावेछे. कोइ चारित्र मोहनीयनो क्षयोपशम करेछे, कोइ जीव क्षायिकसमकितयोगे आठमा गुणठाणाथी क्षपकश्रेणि आरोहण करी चारित्र मोहनीयनो क्षायिक भाव करेछे, कोइ जीव उपशम श्रेणि चढी चारित्र मोहनीय कर्मनी प्रकृतिने अगीयारमा गुणठाणे उपशमावेछे अने त्यांथी पाछा पडे छे. अने यावत् मिथ्यात्व गुणठाणा सुधी आवेछे. कोइ उपशम समकित पामी आठमागुणठाणाथी उपशमश्रेणिए चढेछे अने कोइ क्षायिक समकित पामी आठमा गुणठाणाथी उपशम श्रेणि चढी अगीयारमे गुणठाणे जइ मरे तो अनुत्तर विमानमः जायछे। अने कोइ उतरता गुणठाणे पण मरण पामेछे. अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया अने लोभ तेमज समकित मोहनीय अने मिश्रमोहनीय अने मिथ्यात्वमोहनीयनो क्षायिकभाव कर्या पूर्वे आवता भवनुं आयु बांधी पाछळथी क्षायिक समकित पाम्यो होय ते जीवने बद्धायुक्षायिक समकित जाणवुं. आयुष्य बंधनी अपेक्षाए आवं क्षायिक समकित कछे, तत्त्ववात बहुश्रुतवा केवळी जाणे. ते अशुद्ध क्षायिक समकिती जीव उपशम श्रेणि करे एम कहेवायछे, क्षायिक समकित जीव दशमा गुणठाणे यथाख्यात चारित्र पामी बारमा गुणठाणे ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अने अंतरायकर्मनो क्षायिकभाव करी अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतवीर्य अने क्षायिकभावना For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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