________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
(AAR)
कथी छे. आत्मा अने कर्म चे क्षीरनीरवत् परिणामीछे, आत्मा क्यारे स्वस्वभावमां रमण करेछे. त्यारे कर्मरूप पुद्गलो आत्माना प्रदेशोथी विखरेछे, अने आत्मामा रहेलं अनंतज्ञान आविर्भावे प्रकाशेले. अने आत्मा परमपद पामतां अचल थायछे. जन्म जरा मृत्युनो नाश करी अजरामर पद पामेछे तेषां नपुनरावृत्तिः शिव अर्थात् मोक्ष पामेला जीवो संसारमां पाछा आवी जन्म धारण करता नथी. वळी सर्व जीवो ब्रह्मना अंशछे एम मानीएतो पुण्य पाप बंध मोक्ष आदि घटी शकतुं नथी कारण के सर्वस्य ब्रह्मस्वरूपत्वात् सर्व पदार्थने ब्रह्मस्वरूप मान्याथी धर्म अधर्म मुक्ति विगेरे असत्य - रेछे. तेषां आ वाक्य प्रयोग षष्ठीना बहु वचननोछे, तेथी आत्मा अनंतछे एम प्रतिपादन कर्युछे. ने फरीथी संसारमां आवता नथी. एम कहेवाथी प्रलय काळ थया बाद केटलाक मानेछेके मुक्तिमाथी संसारमां जीव पाछा आवेछे तथा दयानंद सरस्वति ले आर्य समाजनो प्रकाशकछे ते स्वकल्पनाथी एम मानेछेके मुक्तिमांशी जीव संसारमांपाछो आवे छे. एम ते वादियोनुं मानवुं असत्य ठरेछे. अने ते मिथ्या ज्ञानले एम सिद्ध कर्यु. बळी नीमी वेदश्रुतियो पण सम्यग्ज्ञान विना असमंजस भासेछे.
म.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तथाच
इदं सर्वं यदयमात्मा, सर्वे खल्विदं ब्रह्म || अयमात्मा ब्रह्म, अहं ब्रह्मास्मि ||
इत्यादि वेद श्रुतियोपण सम्यग्ज्ञान विना प्रमाणीभूत नथी. सर्व पटले सर्व खलु एटले निश्वययी आ ब्रह्मछे. घट, पट, दंड, चक्र, वृक्ष, सर्प, जगत् सर्व ब्रह्मछे तो सिद्ध थयुं के स्त्री पण ब्रह्म स्वरूप. माता पण ब्रह्मस्वरूप. पुत्री पण ब्रह्मस्वरूप. पोते वक्ता पण ब्रह्मस्वरूप : त्यारे कोने नमस्कार करवो ? कोनुं स्मरण कर? अने बळी स्मरण करवानुं भुं प्रयोजन ? तेनी सिद्धि ठरती नथी. श्वा पण
For Private And Personal Use Only