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परमात्मदेशन. कर्माणिक्षीयंते-आनां कर्म नाशपामेछे. आनां एटले आत्माना आत्मानी साथे ज्ञानावरणीयादी अष्टकर्म अनादिकाळथी क्षीर नीरवत् लाग्यांछे. ते कर्म, आत्मानुं स्वरूप स्याद्वादपणे देखी
आत्म स्वभावमा रमवाथी नाशपामेछे. आत्मा अने कर्म एम बे वस्तुनी सिद्धि थइ, एक आत्मद्रव्यनी द्वितीय कर्मरूप पुद्गल द्रव्यनी अनायासे सिद्धि थइ, कर्मजड अने,अजीवछे, तेथी जीवतत्त्व एम बे तत्त्वज्ञानी प्रभुश्रीमहावीरस्वामीए कथ्यां छे तेनी सिद्धि थइ कदापि सामो प्रश्न एम करवामां आवे के कर्म पण ब्र. मथी भिन्न नथी अने ते ब्रह्मस्वरूपछे. तो उत्तर तरीके कहेवामां आवशे के कर्म ज्यारे ब्रह्मस्वरूप ठयु. त्यारे कर्मनो नाश थतां ब्रह्मनो पण नाश थशे.
बळी विचारोके कर्म छे ते ब्रह्मयकी भिन्न छे अभिन्न? प्रथम पक्षमां ब्रह्मथकी कर्मएकांत भिन्न मानतां पटथी एकांत भिन्न घटनी पेठे बे पदार्थ ब्रह्म अने कर्म भिन्न छ तेनी सिद्धि थइ, द्वितीयपक्षमा ब्रह्मथी कर्म अभिन्न छ एम मानतां ब्रह्म अने कर्म एक स्वरूप यह जशे अने कर्मनो नाश पण थशे नहि.
बळी विचारो के कर्मसत्छे के असत्छे कर्मअसत्मानवामां आवे तो सत्ब्रह्म अने असत् कर्मनो संयोग थाय नहि, कारण के सत्नी साथे जे वस्तुरूपे ना होय तेनो संयोग घटे नहि. अने बेनो संयोग मानवामां आवशे तो बे पदार्थ भिन्न स्वभाववाळा भिन्न ठा, त्यारे एक एव ब्रह्म आवाक्यनो नाश थयो एम अवश्य सिद्ध ठरेछे. स्याद्वादपणाथी तो ते सर्व जिन दर्शनमा यथार्थ घटेछे अने आस्मानी सिद्धि थायछे अने कर्मनी सिद्धि थायछे. आत्मा ज्ञानादिके करी सत्छे अने कर्मरूप पुद्गलनी अपेक्षाए असत्छे. पण पुद्गल द्रव्य पोताना स्वरूो सत्छे. आत्मा अने कर्मनो संयोग अनादिका
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