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परमात्मदर्शन.
( २९९)
RAAKAnda
४ वेदसमकित, ५सास्वादनसमकित, अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया अने लोभ तेमज समकित मोहनीय मिश्र मोहनीय, मिथ्यात्व, मोहनीय ए सात प्रकृति सर्वथा क्षय थतांसायिक समकितनी माप्ति थायछे.
श्री जिन वचनज तस्वरूपछे वीतराग होवाथी एम सामान्य रूचिवाळा जीव ने द्रव्य सम्यक्त्व पणुं स्फुट थायछे. अने नय निक्षेप प्रमाणना विचारयी तत्व श्रद्धावाळा जीवने भाव सम्पनत्व पणुं स्फुट थायछे अहिं द्रव्य शब्दार्थ कारणता अने भाव शब्दार्थ कार्यता रूप जाणवो एम श्री हरिभद्रसूरि कहेछे. . श्री उत्तराध्ययन सूत्रानुसारे दशविध सम्यक्त्व कहेछे. १ सत्य अर्थनी साये संमतिवडे जीवाजीवादि नव पदार्थ संबंधी
जे रुचि ते निसर्ग रुचि जाणवी. २ परोपदेशवडे प्रयुक्त जीवाजीबादि पदार्थ विषयनी जे अदा
ते उपदेशरुचि कहेवायछे. ३ रागदेष रहित एवा पुरुषने आज्ञा वडे धर्मानुष्ठानमा रुचि पाय
तेने आज्ञारुचि समकित कहेवायछे. ४ सूत्रना अध्ययन तथा अभ्यासथी उत्पन्न थएला विशेष ज्ञान - वडे जीवाजीवादि पदार्थना विषयमा रुचि थाय तेने सूत्र
सचि समकित कहेछे.. सूत्र रूचि उपर गोविंदाचार्य- दष्टांत जाणवू. ५ एकपद बडे अनेकपदतथा तेना अर्थना अनुसंधान द्वारा जलमा तेलना बिंदुनी जेम रुचि प्रसरि जाय तेबीनरुचि
सम्यक्त्व कहेवायछे. ५ जेने सर्व मूत्रना अर्थ, ज्ञान उत्पन्न थाय ते अभिगम कवि
सम्यक्त्व कहेवाय. त्यारे अत्र शंका य के अभिगम संच
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