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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३..) सम्यक्त्वरुचि. अने. सूत्रमा शोफेर-प्रत्युत्तरमा समजवान के-आ अभिगम रु. चि अर्थ सहित सूत्रना विषयमा आवेछे. अने ते सूत्ररुचि केवळ सूत्रना विषयमांज आवेछे एटलो ते बन्नेमां भेदले. केव ल सूत्र मूल कथायछे. ७. सर्व प्रमाण तथा सर्व नयथी उत्पन्न थएल सर्व द्रव्य अने __ सर्व भावना विषयनी रुचिने विस्तार रुचि सम्यक्त्व. कहेवा .यछे तेथी विशेष लाभ प्राप्ति थायछे. . ८ ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप अने विनय वैयाकृत्य आदिना आच रण संबंधी रुचि ते क्रियारुचि कहेवायछे.. ९ जेणे कुदष्टिनो अभिग्रह को ना होय अने जे प्रवचनमा प्रवीण न होय तेवा पुरुषने मात्र निर्वाण पद संबंधी रुचि ते संक्षेप रुचि जाणवी जेम उपशम संवर अने (विवेक आ त्रण पदनी रुचि चिलाती पुत्रने थइ हती तेम समजवू. १० धर्मपद श्रवणथी उत्पन्न थएली जे धर्मपदवाच्य संबंधी रुचि . ते धर्मरुचि कहेवायछे. समाकतरत्ननी प्राप्ति दुर्लभछे-समकित पाम्या पश्चात् संसार समुद्र चुलुक प्रमाण समजको. आ संसारचक्रमां अनंतशः परिभ्रमण करी अनंतवार अनंतदुःख पाम्यो. अनेक देहो धारण कर्या. प्रत्येक भवमां अनेक दुःख भोगव्यां. जन्म जरा मरणादि दुःखोनो भोक्ता घणीवार थयो. पण पार आव्यो नहि. जीव पुनः पुनः परस्वभावमा रमण करी कर्म ग्रहेछ. आत्मस्वभावमां रमण करवा. थी कर्म नाश पामेछे, कम्मपयडी आदि ग्रंथोमांथी विशेष स्वरूप जाणवु. कर्मनो नाश करी मोक्षनगरमा जवानी इच्छा होय तो अनुभव ज्ञाननो खप करो. मतिश्रुत ज्ञान हुँ उत्तर भावी अने केवळज्ञाननु पूर्वभावी अनुभवज्ञानछे.. दृष्टांत जेम सूर्य केवलज्ञानछे For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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