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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९८ ) उम. AAM थायले. शास्त्राभ्यासनो उद्यम करतां पंचमकारे स्वाध्याय करता ज्ञानावरणीयकर्मनो क्षयोपशम थाय छे. तेम प्रत्येक घातीकर्मनो नाश उद्यमथीछे. धर्मध्यान अने शुक्लध्यानरूप उद्यमथी ज्ञानीओ कृत्स्न कर्मनो क्षय करेछे. चारित्रनो खप करतां चारित्र मोहनीयनो पण नाश थायछे. माटे पंचमकाळमां पण भव्यजीवोए पुरुषार्थ क मति अज्ञान श्रुतअज्ञान त वो. पुरुषार्थना पण अनेक भेदछे. माटे सत्यपुरुषार्थ ग्रहवो जोइए. समकितनी प्राप्ति बिना सबळी परिणति थती नथी. अने समकित बिना पुरुषार्थ निष्फल जाणवो. समकित मोक्षनगरतुं द्वारछे. समकितविना कोइ जीव मोक्षमां गयो नथी. अने जवानो नथी. समsa fear ज्ञानावरणीय कर्मनो क्षयोपशम पण अज्ञान तरीके लेखायले. एटले मतिज्ञानावरणीय कर्मनो क्षयोपशम तरीके गणायछे. श्रुतज्ञानावरणीय कर्मनो क्षयोपशम रीके लेखायछे. अने अवधिज्ञानावरणीय कर्मनो क्षयोपशम विभंग ज्ञान तरीके गणायछे. अने ज्यारे समकितनी प्राप्ति थायछे त्यारे तेनो क्षयोपशम सवळो परिणमेछे. अने ते मतिज्ञान श्रुतज्ञान अबधि ज्ञान तरीके गणायछे. समकित विना अभव्य जीव मुक्ति पामतो नथी. बाह्य चारित्र पाळीने अभव्य जीव नवग्रैवेयक पर्यंत जायछे किंतु समकितविना भावचारित्र पामी शकतो नथी अने तेथी ते चतुर्गतिमां पुनः पुनः परिभ्रमण करेछे, समकितनो महिमा अपूर्वछे, पंच प्रकारना मिथ्यात्खनो नाश थवाथी समकितनी उत्पत्ति थाय छे. पंच मकारना मिथ्याखनो नाश जिनागम सांभळवाथी यायछे, सद्गुरुनी श्रद्धा भक्तिथी उपदेश श्रवण करतां मिथ्यात्त नाश पामेछे, समकितनी प्राप्ति माटे आगळ षट्स्थानक कहेवामां आवशे. समकितना पंचमकारछे. १ उपशम समकित २ क्षयोपशमसभक्ति, ३ क्षायिकसमकित , For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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