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परमात्मदर्शन.
(२९.) ज्ञाने अज्ञाननो नाश कर्यो. दयाए हिंसानो नाश कर्यो, शांतिथी तृष्णा नाश पामी. कर्म राजानुं सैन्य नाश पामतुं पार्छ हठवा लाग्यु. ब्रह्मचर्य पुत्रे अब्रह्मचर्यनो सर्वथा नाश को-परगुण प्रशंसाए निदानो नाश कर्यो. ज्ञाने कषायनो पण स्थिर परिणामने साहाय्य आपी नाश कराव्यो. धर्म ध्यान रूप योद्धाए आर्तध्यान अने रौद्र ध्याननो नाश कर्यो. संतोषे तृष्णानो नाश को, क्षायिक समकित पामी जीव स्वस्वभाव शक्ति पामी आत्म रूप प्रकाशवा लाग्यो. हास्य, रति, अरति, भय, शोक, दुगंछा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसक, वेद रूप कर्म सैन्यनो नाश अप्रमाद तथा ध्यान योद्धाए को. पंच प्रकारनी निद्रानो तथा चक्षु दर्शनावरणी आदिचारनो तथा ज्ञाना वरणोय कर्मनो तथा अंतरायनो नाश उपयोग मंत्रीनी साहाय्यथी शुक्लध्याने कर्यो. आत्मा तेरमे गुणठाणे जइ अनंत चतुष्ठयथी शोभवा लाग्यो. अंते अघाती कर्मनी प्रकृतिनो पण नाश करी मुक्ति पुरीमा गयो. एम धर्म राजानो जय जयकार थयो अने कर्म राजानु सैन्य नाश पाम्यु. आत्मा परमात्म दशा पामी निर्भय थयो. अनंत जीवो एम कर्मनो नाश करी मुक्तिमां गया अने अनागत काले अनंत जीव मुक्तिमा जशे. कर्मनो नाश उपयोग दशाए अनंता जीयो करेछे अने करशे. जोव कर्मनो नाश करतो क्षायिक भावनी नवलब्धियो पामेछे.
सायिक भावनी नव लब्धियोना नाम: १ क्षायिकसमकित, २ क्षायिकचारित्र, ३ अनंतज्ञान, ४ अनंत
दर्शन, दान, लाभ, भोग, उपभोग अने वीर्य ए रीते नवलब्धियोनी प्राप्ति गुणठाणानी हद प्रमाणेछे.
हवे संबंध दर्शावतां कथायछे के-उद्यमथी कर्मनो क्षय थायछे. उपशमभाव क्षयोपशमभाव अने क्षायीकमावनी माप्ति पण उद्यमयी
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