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कर्मराजा अने धर्मराजार्नु युद्ध. पण याद राखq के जे जीवो मने सेवेचे. तेओनां क्रोध, छिद्र देख्या करेछे. अकाम अने सकाम ए बे भेदे मारु प्रवर्तनछे. चार हत्याकारक जीवोनो पण माराथी उद्धार थायछे. अनंताजीवो कर्म क्षपावी मुक्तिपद पाम्या अने पामशे तेमां मारो प्रभाव जाणवो. माटे हे धर्मराजाजी ! आप स्वस्थ थाओ. आपणुं सैन्य एव॒तो बळवान् छे के त्यां कर्मराजानुं कांइ चालवा, नथी.. .. आ प्रमाणे धर्मराजाना सुभटोए पोतपोता, पराक्रम वर्णव्यु. त्यारे धर्मराजा अत्यंत हर्षायमान थयो अने मनमां समज्यो के मारु सैन्य प्रवलछे. . आ प्रमाणे अत्र धर्मनृपनी सभामां वृत्तांत चालेछे त्यारे कर्मराजानी सभामां ते प्रमाणे धामधूम चाली रहीछे. मिथ्या चेतना नामनी कर्म राजानी दासीए कर्मने धर्मनी सभामां बनेली सर्व हकीकत कही. त्यारे सम्यक् चेतना दासी धर्मनी अग्रे कर्म नृप सभामां बनेली सर्व हकीकत कही. परस्पर युद्ध कार्यनी सर्व सामग्रीयो तैयार थवा लागी. धर्मनृपे पोताना सुभटोने कांके-मारा प्रिय सुभटो! तमो शत्रु सैन्यनो पराजय करो, मारुनाम अमर राखशो, वळीतमारा जेवा शूरा सुभटोर्नु पराक्रम रण संग्राममां मालुम पडशे. माटे चतुराइथी युद्ध कर. .. ते प्रमाणे कर्म राजाए पण सर्व सुभटोने वीर रसनां वाक्यो कथी शूर चढाव्यु. सुभटो पण परस्पर पराक्रम बताववा आतुर थइ रथा-परस्पर युद्ध चाल्युं तेमां श्रद्धा रूपी सुभटे मिथ्यात्व रूपी योद्धाने हरायो. समकित रोनापतिए मोह प्रधाननी शक्तिनो नाश कर्यो, क्षमा पुत्रीए क्रोधनो नाश कर्यो, जीव चोथा गुणठाणा आदि गुणस्थानक चढवा लाग्यो. बिरतिए अविरतिनी शक्ति नाश करी..
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