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(२०)
भात्मा पोताने जाणे.
"दुहा." तेने तेहिज ओळखे, अवर म ज्ञाता कोय, ज्ञाता तेहिज आतमा, नित्यपणे जग जोय. २
भावार्थ-आत्मा पोते पोताने ओळखे छे, आत्मा विना अन्य कोइ आत्मानो ज्ञाता नथी, सर्व पदार्थ ज्ञानवडे जे ज्ञाता छे, ते आत्मा जाणवो, आत्मानुं स्वरूप अन्यथा यतुं नथी, एज अद्भूत आश्चर्य छे. जगत् अवस्थितसर्व पदार्थो ज्ञानथी जगाय छे, अने स्वकीय शुद्ध स्वरूप पण ज्ञानथी जगाय छे, स्व परने ज्ञानमा विषयभूत करनार तेज आत्मा छे, आत्माथी भिन्न जड वस्तु. मां ज्ञान गुण नथी, ज्ञान गुण शक्ति अलौकिक छे, निगोदीया जीवोने पग आत्माना आठ रुचक प्रदेश निर्मला छे, ज्ञान त्यां चेतन अने चेतन त्यां ज्ञान सदा रह्यं छे, निमित्तना योगे आत्मा पोताने सयमेव अनायासे ज्ञानयी निहाळे छे, कोइ सिंहर्नु बच्, नानुं धाव' कोइ भरवाड पकडी लाव्यो. पेलं सिंहनुं बच्चु बकराना टोळा भेगुं रमा फरवा लाग्युं, अने मनमां समजे छे के हुँ पण बकरांना जे छु, मारी जाति अने बकरांनी जाति जुदी नथी, एम समजतुं हतुं, प्रतिदिन ते सिंहवाल मोटुं थवा लाग्युं, एक दिवस बकरां सहित वाडामां ते बच्चु बेलुं हतुं त्यारे एक सिंह आव्यो, पेटु सिंहनुं बच्चु मनमां विचारवा लाग्यु के-अहो आ सामुं प्राणी देखाय छे ते विचित्र छे, तेनुं शरीर अने मारु शरीर मळतुं आवे छे हुँ जे टोळामा रहुं हुं तेना शरीरनां लक्षण अने मारा शरीरनां लक्षण भिन्न भिन्न छ, आ सामुं जे प्राणी देखाय छे तेना सरखो हुँ छु, एम ज्ञान थतां एकदम वाडामांधी बहार नीकळी गयो अने सिंह समुदायमां भळ्यो, तेम आत्मा पोतार्नु
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