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परमात्मदर्शन.
(१९) शुभ गति छे, ए प्रमाणे गुरु महाराज तीर्थरूप जाणवा, तीर्थ वे प्रकारना छे. १ लौकिक तीर्थ, २ लोकोत्तर तीर्थ. वेळी लोकोत्तर तीर्थ द्विधा छे, वळी तीर्थ बे भेदे छे, स्वतीर्थ अने परतीर्थ, वळी तीर्थ बे प्रकार छे, द्रव्यतीर्थ अने भावतीर्थ. वळी शुद्ध अने अशुद्ध, ए बे प्रकारे तीर्थ छे. स्थावरतीर्थ करतां पण सद्गुरू विषे अधिक श्रद्धा भक्तिभाव जागशे, त्यारे नक्की समजवू, के आत्मा कल्याण यशे, धर्मपद धर्मगुरुनी स्तुति पोताना आत्माने निर्मल करे छे, गुरुनो राग, भवभ्रमण त्याग करावे छे, गुरुने तीर्थनी उपमा आपवानो हेतु ए छे के गुरुराज संसार समुद्रमांथी भव्य जीवने तारे छे, एवा धर्म गुरुराजनुं शरण मन वचन अने कायावडे याओ, गुरुराजने सत्य देवनी उपमा आपवामां आवे छे, गुरु रूप देव तो पुण्य अने पापकृत्य स्वरुपने अवबोधे छे, अने भव्यात्माओ उपर गुरु देव सदा काल कृपादृष्टि फेंके छे, अज्ञानरुप अंधकार कोइनार्थी नाश पामे नहीं तेवा मिथ्यात्व अंधकारनो नाश गुरुमहाराज उपदेशद्वारा करे छे, गुरु तेज देव छे, श्री गौतम स्वामीना मनमां विद्यानो अहंकार हतो अने आत्मा छे के नहीं तेनी शंका हती, तेमन पण श्री महावीर गुरुए शंका टाळी चारित्र अर्पा हित कयु, देवताओ पण पंचमहाव्रत धारी ध्याननिष्ट महामुनि गुरुने नमस्कार करी स्तवे छे, माटे गुरु तेन सापेक्षतः देव जाणवा, आत्मानी सिद्धि गुरुथी थाय छे सर्व शाश्वत सुखरुप मांगल्यमद गुरुराज छे, माटे आयमां स्तुतिरूप गुरुतुं मंगल कर्यु, आत्मा पोताने स्वयमेव जाणे छे ते दर्शावे छे.
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